यूं करें टीबी को टाटा

Saturday, March 24, 2012

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विश्व क्षय रोग दिवस - 24 मार्च
पोलियो जैसी भयावह बीमारी पर हमने काबू पा लिया, लेकिन क्षय रोग मुक्त भारत बनाने में हम बहुत पीछे रह गए। स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है। राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के बाद राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम भी चलाना पड़ रहा है। इसके बावजूद भी स्थिति बिगड़ती जा रही है। इसकी मुख्य वजह लोगों में जागरुकता का अभाव है। टीकाकरण और उपचार का लाभ सभी नहीं ले पा रहे हैं। क्षय रोग से कैसे बचा जा सकता है, ऐसी ही जानकारी आपको यहां दे रहे हैं।

क्षय रोग (टीबी) यानि तपेदिक का जिक्र हमारे वेदों में भी मिलता है। वेदों में इसे राजयक्ष्मा का नाम दिया गया है। इतने लंबे समय से विद्यमान इस रोग पर आज तक नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। भारत सरकार ने क्षय रोग पर नियंत्रण पाने के लिए सन् 1962 में राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम लागू किया। इसके बाद भी स्थिति में संतोषजनक परिणाम देखने को नहीं मिले। बढ़ते क्षय रोगियों की संख्या से सिर्फ भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व ही जूझ रहा था। इसको ध्यान में रखते हुए 1993 में डब्ल्यूएचओ ने टीबी को वैश्विक महामारी घोषित किया। इसके बाद राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम का नाम बदलकर राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम कर दिया गया। इस रोग से कैसे बचा जा सकता है, लक्षण क्या हैं, ऐसी ही जानकारी आपको यहां दे रहे हैं।

यूं पहचाने टीबीटीबी एक संक्रामक रोग है जो माइकोबैक्टीरियम् ट्यूबक्लोसिस नामक जीवाणु के द्वारा फैलता है। इस बैक्टीरिया का असर ऐसे लोगों पर अधिक होता है, जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। एड्स के रोगी बहुत जल्द इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं। संक्रमित व्यक्ति जब खांसता, थंूकता या छींकता है तो ये बैक्टीरिया हवा में फैल जाता है। वैसे टीबी ज्यादातर फेफड़ों को ग्रसित करता है, लेकिन 15 प्रतिशत केसेज में शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होते हैं जिसमें मस्तिष्क, आंतें, गुर्दे,  हड्डी व जोड़ भी प्रभावित होते हैं। टीबी प्रभावित व्यक्ति के संपर्क में आने से अन्य लोगों में भी संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। यदि व्यक्ति को इस तरह के लक्षण नजर आएं तो तुरंत जांच कराएं।
  •  तीन सप्ताह से लगातार खांसी आना
  •  विशेष तौर से शाम को बढ़ने वाला बुखार
  • सीने में दर्द
  • वजन कम होना
  • भूख न लगना
  • बलगम के साथ खून आना
यहां करें संपर्क-
माइक्रो बायोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. विनोद सिंह कहते हैं कि संबंधित लक्षणों में से यदि किसी भी प्रकार का लक्षण नजर आए तो नजदीक के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर जाकर बलगम की जांच कराएं। यह जांच नि:शुल्क होती है। जांच के बाद यदि नमूना पॉजीटिव पाया जाता है यानि व्यक्ति का टीबी का संक्रमण होता है, तो इलाज भी मुफ्त किया जाता है। टीबी का इलाज डाट्स पद्धति से किया जाता है। टीबी का उपचार कराते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इलाज की कड़ी टूटनी नहीं चाहिए। उपचार की अवधि छ: से आठ माह की होती है। यदि उपचार को बीच में रोक दिया तो टीबी को पूर्णत: ठीक करना मुश्किल होगा। इतना ही नहीं उपचार भी बेअसर होने लगता है। इसलिए टीबी से ग्रसित व्यक्ति को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि इलाज को बीच में रोकें नहीं।
बचाव-
इस रोग से बचने का सबसे कारगर उपाय है कि जन्म के एक माह के भीतर बच्चे को बीसीजी का टीका लगवाएं जो बच्चे के जन्मभर काम आता है। इसके अलावा प्रभावित रोगी खांसते व छींकते वक्त मुंह पर रूमाल रखें। जगह-जगह पर थूकें नहीं।
अच्छा खाएं-
व्यक्ति की स्वस्थ्य जीवनशैली और अच्छा खान-पान ही उसे निरोगी बना सकता है। टीबी से प्रभावित व्यक्ति को धूम्रपान और मद्यपान से बचना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियां, दाल और फलों का सेवन करना चाहिए। बेहतर पोषण से प्रभावित व्यक्ति जल्दी ठीक हो सकता है।
  • विश्व क्षय रोग दिवस हर साल 24 मार्च को मनाया जाता है। इसी दिन सन् 1882 में डॉक्टर रॉबर्ट कोच ने टीबी के पहले केस की पहचान की थी।
  • हर साल भारत में 19 लाख नए रोगियों की बढ़ोत्तरी हो रही है। विश्व में 94 लाख रोगियों में से हर पांचवां रोगी भारत में है।
  • सन् 2006 में डब्ल्यूएचओ ने टीबी की रोकथाम के लिए डाट्स इलाज को अमल में लाया। अभी तक 41 मिलियन से अधिक रोगी इससे लाभान्वित हो  चुके हैं।
  • जानकारी के अनुसार 2009 में विश्वभर में 1.7 मिलियन लोगों की मौत टीबी के कारण हुई थी। इस रोग से ग्रसित एक व्यक्ति सालभर में 10-15 लोगों में इसका संक्रमण फैला देता है।
  • पूरी दुनिया की एक तिहाई आबादी टीबी के जीवाणु से प्रभावित है।
  • अफ्रीका और एशिया के देशों में इसका प्रभाव सबसे अधिक है। भारत और चीन में भी टीबी के नए केसेज देखे जा रहे हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि गरीबी भी टीबी का मुख्य कारक है।
  • मप्र में टीबी रोगियों की क्योर रेट 85 फीसदी है।

‘टी.बी. पर काबू न कर पाने की मुख्य वजह जागरुकता का अभाव है। पीड़ित व्यक्ति बीच में ही इलाज छोड़ देता है, साथ ही बताए गए परहेज और सावधानियों को भी ध्यान में नहीं रखता है। इस कारण यह रोग थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। हालांकि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
डॉ. मनोज वर्मा, जिला क्षय रोग अधिकारी, भोपाल’