ऐतिहासिक धरोहर मुगलकालीन स्वर्ण मुद्राएं

Monday, October 7, 2013

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अंकिता मिश्रा, भोपाल।

वन और खनिज संपदा से परिपूर्ण प्रदेश  को देशभर में जैव विविधता के लिए भी जाना जाता है। इतना ही नहीं ऐतिहासिक धरोहरों और संस्कृतियों के लिए भी यह पहचाना जाता है। पिछले साल प्रदेश  के बुरहानपुर जिले से प्राप्त हुईं 482 स्वर्ण मुद्राएं इसका ताजा उदाहरण हैं। पुरातत्व विशेषज्ञों ने अपने परीक्षणों और विश्लेषण  के आधार पर इन मुद्राओं को मुगलकालीन सल्तनत का बताया है। इन स्वर्ण मुद्राओं पर शासक का नाम और वर्ष बाकायदे सुनहरे अक्षरों में उकेरे गए हैं। प्रदेश की खनिज संपदा और धरोहर से लोगों को परिचित कराने के लिए प्रदेश सरकार ने भोपाल स्थित राज्य संग्रहालय में मुद्राओं की प्रदर्शनी भी लगवाई। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे और उन्होंने मुगलकालीन मुद्राओं को बारीकी से देखा और मुद्रा के इतिहास से जुड़े पहलुओं को भी जाना।


सबसे अधिक मद्राएं औरंगजेब की-
इन मुद्राओं की सबसे खास बात यह है कि इन्हें देखने पर समयकालीन परंपरा और कला के दर्शन होते हैं। प्रदर्शित में जितनी भी स्वर्ण मुद्राएं प्रस्तुत की गईं वे जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के काल की हैं। प्राप्त 482 मुद्राओं में 430 सिक्के सिर्फ औरंगजेब के शासनकाल के हैं। औरंगजेंब के शासनकाल की 430 मुद्राओं में अहमदनगर की 3, अकबराबाद की 3, औरंगाबाद की 115, बुरहानपुर की 39, इलाहाबाद की 9, जाफराबाद की 6, गोलकुंडा की 9, खम्बात की 31, काबुल की 2, मुलतान की 9, पटना की 2, सोलापुर की 35 और सूरत से जारी 216 टकसालें शामिल हैं।
सबसे कम संख्या जहांगीर के काल के सिक्कों की हैं। इनकी संख्या मात्र 4 हैं,  वहीं शाहजहां के समय के समय के सिक्के 33 हैं। इसमें से 3 मुद्राएं अहमदाबाद की, इलाहाबाद की 9, बुरहानुपर की 4 मुद्राएं, दौलताबाद की और मुलतान से जारी की गई 4 टकसालें शामिल हैं। जहांगीर का शासनकाल 1605-1627 ई. तक रहा। शाहजहां ने 1628 से 1658 तक शासन किया, वहीं औरंगजेब ने 1658 से 1707 तक सल्तनत संभाली।
इससे पहले भी इस तरह की स्वर्ण मुद्राएं खुदाई में मिली चुकी हैं। 1953 के सबसे बड़ा दफीना बयाना, राजस्थान से गुप्तकालीन स्वर्ण मदुाएं मिली। इसके बाद सबसे बड़ा दफीना मप्र के जिले बुरहानपुर में मिला, जो अपने आप में एक बड़ा उदाहरण है। 467 मुगलकालीन स्वर्ण मुद्राओं का इतना बड़ा संग्रह अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है।


खुदाई में मिला खजाना-
बुरहानपुर शहर के सिकारपुरा  क्षेत्र की निवासी सविता रानी और उनके पति मुकेश  को घर में खुदाई के दौरान 2003 में ये स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुईं। जब उनको कलश  में भरी हुईं ये मद्राएं मिली तो सब भूले गए। उन्हें समझ ही नहीं आया कि प्राप्त सिक्कों का क्या करें। कुछ दिनों तक उन्होंने इस बात की किसी को काई खबर नहीं दी, लेकिन गुजरात के जूनागढ़ निवासी अपनी पुत्री-दामाद को इसके बारे में बताया। उन्होंने सिक्कों को अपने बेटी-दामाद के पास भेज दिया। दामाद ने अपने मित्र को यह बात बताई। स्वर्ण मुद्राओं को कैसे और किस रूप में अपने पास संरक्षित किया जा सकता है। इस समय इसकी बाजार में कीमत क्या है। इन सभी पहलुओं पर विचार विमर्श  के बाद यह तय हुआ कि सिक्कों को गलाकर रॉड  तैयार की जाए। कुछ सिक्कों को उन्होंने गलाया भी। इसी बीच दोनों दोस्तों में मतभेद हो गया। दूसरे मित्र ने कहा कि आधा हिस्सा इसमें से दो, वराना पुलिस को बता देंगे। दोस्त की यह बात सुनकर सविता के दामाद ने स्वयं पुलिस को खजाने के बारे में बताया। पुलिस ने मुद्राएं अपने कब्जे में कर लीं और सरकार ने जांच पड़ताल के बाद तय कि इसे शासकीय खजाने में डाल दिया जाए। गुजरात सरकार के हाथों में प्रदेश से प्राप्त हुई ऐतिहासिक धरोहर चली गई। यह बात सुनकर सविता रानी ने तय किया कि मुद्राएं प्रदेश  में प्राप्त हुईं हैं, इसलिए ये प्रदेश की ही धरोहर हैं। यह बात मप्र शासन को भी पता चली। सिक्कों की खोजबीन की गई। आखिरकार 6 अगस्त 2007 को मध्य प्रदेश की निधि होने का आदेश एम.ए.जी./सी 3940/2006 आदेश पारित किया। इसके बाद पुरातत्व आयुक्त ने एक टीम गठित करके गुजरात राज्य से सिक्कों को प्रदेश में लाने की तैयारी शुरू की। इसके बाद 23 फरवरी 2010 को स्वर्ण मुद्राएं प्रदेश शासन को मिली, जिन्हें प्रदेश के राज्य संग्रहालय में 24 फरवरी 2010 को सौंपा गया।