22 अप्रैल, विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष
शहरों से गौरैया का दूर चले जाना अपने आप में चिन्ता का विषय है। यह समस्या केवल हमारे प्रदेश में या देश की नहीं है, बल्कि समूचे विश्व की है।
घर के आंगन में दानें चुंगती गौरैया आज दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आती है। पक्षी विशेषज्ञों का भी मानना है कि इसकी मुख्य वजह बदलती पर्यावरणीय दशाएं हैं। पक्के मकानों का इतनी तेजी से बनना और फसलों में कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। घरेलू चिड़िया गौरैया की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह मनुष्य के आस-पास ही अपना जीवन बिताती है। दूर जंगल में जाकर बसेरा बनाना उसके स्वभाव में ही शामिल नहीं है। यही वजह है कि पुराने घरों में उसका घोंसला पाया ही जाती था। आज के समय में आदमी वातानकूलित और पक्के मकानों में अपना जीवन निर्वाह कर रहा है। ऐसे घरों में गौरैया के लिए कोई भी जगह नहीं बची है। यह समस्या केवल हमारे देश या प्रदेश की नहीं है, बल्कि समूचे विश्व की है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ देहरादून ने घरेलू चिड़िया गौरैया के अचानक कम होने पर एक शोध भी किया गया है। डॉ. ऑलिवर ऑस्टिन ने अपनी किताब ‘बर्ड ऑफ द वर्ल्ड’ में पक्षियों की दशा का जिक्र किया है। जानकारी के अनुसार आज से 2,50,000 वर्ष पहले प्लाइस्टोसीन युग में पक्षियों की 11 हजार 500 प्रजातियां मौजूद थीं, जिनकी संख्या घटकर अब सिर्फ 9 हजार बची है। अंदेशा है कि 600 सालों में 100 विशेष प्रजातियां भी खत्म जाएंगी। वर्तमान समय की बात करें तो 1000 से ज्यादा प्रजातियां खत्म होने की कगार पर हैं। उसमें चील और गिद्ध भी शामिल हैं। अपने आस-पास पाए जाने वाले जीवों को खत्म करकर हम किस विकास यात्रा की बात कर रहे हैं, इसके बारे में हमें सोचना होगा। पक्षी विशेष डॉ. सलीम अली ने पक्षियों और उनके गिरते अस्तित्व को लेकर खूब काम किया है। उन्होंने अपनी किताब ‘एक गौरैया का गिरना’ में गौरैया का बड़े ही संजीदा ढंग से वर्णन किया है। समय पर यदि हम नहीं चेते तो घर के आंगन में आकर अपनी चहचहाहट से नींद से उठाती और भोर की किरण का अहसास कराने वाली गौरैया हमारी आंखों के सामने से ही कब ओझल हो जाए, हमें पता भी नहीं चलेगा।
अंकिता मिश्रा