अंग्रेजी बिन सब अधूरा............

Thursday, April 28, 2011

कहने के लिए हम भले ही बोले कि हम भारतवासी हैं और हमारी मातृभाषा हिंदी हैं, लेकिन जहां बात सफलता के पायदान छूने की आती है तो अंग्रेजी का ही सहारा लेना पड़ता है। मजबूरी है क्योंकि हिंदी में न ही अच्छी किताबें उपलब्ध हैं और न ही अच्छे शिक्षक। कुल मिलाकर बात अंग्रेजी पर आकर ही टिक जाती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर अपनी प्रतिभा का परचम लहराना है तो अंग्रेजी सीखना जरूरी है। आज का युवा भी यह बात अच्छी तरह से समझते हैं। इसीलिए तो अंग्रेजी सीखने के लिए और अच्छे संस्थानों के चयन के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। चाहे मैनेजमैंट के क्षेत्र में जाना हो या इंजीनियरिंग के। भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल होने के लिए भी अंग्रेजी से होकर गुजरना होगा।
पिछले साल घोषित हुए संघ लोक सेवा आयोग के परिणामों में भी प्रथम 25 छात्रों की सूची में 21 अंग्रेजी माध्यम से पढ़े प्रतिभागी हैं जबकि हिंदी माध्यम के 4 प्रतिभागी ही टॉप 25 में अपनी जगह बना पाए हैं।
कुछ दिनों पहले ही एक साहित्यिक पत्रिका में डॉ. राम चौधरी का लेख पड़ा। उन्होंने अपने लेख के माध्यम से हिंदी भाषा के प्रति चिन्ता व्यक्त करते हुए लिखा कि अंग्रेजी को हटाना पहाड़ की तरह है। जबकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमेशा से ही षिक्षा में स्वभाषा को शामिल करने की बात करते रहे। क्या उनकी यह बात साकार रूप ले पाएगी। यह आज भी सवाल बना हुआ है। अंग्रेजी का बाजार दिन प्रतिदिन फैल रहा है। इसको मुठ्ठीभर लोग हिंदी बोलकर नहीं रोक सकते। अगर अंग्रेजी को पछाड़कर हिंदी का व्यापक स्तर पर प्रसार करना है तो हिंदी में अच्छी किताबों से लेकर हर एक प्रकार की उपयोगी जानकारी मातृभाषा में उपलब्ध करानी होगी। 

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