फुहारों को देख लौट आता है बचपन

Tuesday, August 2, 2011

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डॉ. सुमन चौरे

  रक्षाबंधन पर विशेष-

सावन की रिमझिम फुहारों के साथ-साथ थिरकती बूंदें ले आती हैं बहुत सारी यादों की बौछारें। कोई बौछार मन को नहला जाती है बचपन की सलौनी स्मृतियों से, तो कोई फुहार भिगो जाती है भाई-बहनों के सरस-पावन त्योहार रक्षा-बन्धन की यादों से।
एक लम्बा अरसा हो गया, बचपन हमसे बहुत पीछे छूट गया। फिर भी सावन आते ही बूंदों में बचपन लौट आता है। कभी सुनाई देती है, गांव की गलियों में बैलों के गले की घण्टियां, गाड़ियों के चकों की घुर-घुर, नई नवेली बहन बेटियों के पैरों की पायल की छुन-छुन, तो नीम पर बंधे हिण्डोलों से उठते सखियों के सुमधुर कण्ठों की स्वर लहरियां..।

रिमझिम वरसऽ छे मेहऽ
सखी री सरावणऽ आयो जीऽ
हिण्डोला थिगी रह्या आकासऽ
वीरों म्हारों लेणऽ आयो जीऽ।

आसमान को छूते हिण्डोले, उतने ही ऊंचे अरमान बहनों के। बाबुल के घर जाना है। रक्षा बंधन पर भाई लेने आएंगे। सब कुछ भाव हिण्डोलों के साथ स्वरों में लहराने लगते हैं। बार-बार बूंदों में प्रतिबिम्बित होता है मेरे गांव का हाट। रंग-बिरंगी राखियां, डोरे, चूड़ी बिल्लौर से सजे हाट। बहनें बड़े उत्साह से बाजार में घूम-घूम कर सुन्दर राखी खरीदती हैं, तो कहीं से बहुत सारे चकरी भौरों के बीच से भाई के लिए सुन्दर रंगीन लट्टू खरीदती हैं। बहन-भतीजों के लिए हार-साकळा, फुंदना, पांचा, लम्बे हरे-लाल रंग की फुंदने की चोटियां, तो गिल्ली, कंचा आदि आदि, सब कुछ कितना लुभावना सलौना सौदा होता था हाट का। खुशी-खुशी आंचल में भरकर उत्साहित कदमों से घर लौटती थीं सभी बहन-बेटियां।
राखी का त्योहार हमारे घर कई रूपों और रंगों में आता था। भोर होते ही श्रावणी के पूजन की तैयारी। बहुत से पंडित-पुजारी और हमारे परिवार के सभी सदस्य कावेरी तट पर यज्ञोपवीत बदलते थे। फिर कच्चे सूत की रंगीन राखी देवताओं को बांधी जाती। पंडित-पुजारी हमारे आजा को राखी बांधते थे। फिर घर के नौकर-चाकर हमारे आजा, दादा, बाबूजी आदि सभी को राखी बांधते थे।
दोपहर बाद घर की बहन-बेटियां सबको राखी बांधती थीं। हम भी जल्दी से भाइयों को राखी बांध देते थे। राखी के पहले तक बड़ा संयम रखना पड़ता था। क्योंकि आज के दिन भाई-बहनों के लड़ने पर बड़ी पाबन्दी रहती थी। बड़ा मुश्किल दिन होता यह। भाई बहन लड़ें नहीं, तो प्रेम कैसा। मझला भाई राखी के अवसर का बड़ा फायदा उठाता था। बहुत सारी फरमाइशें करता था। उसकी स्लेट पत्थर के कोयले से घिसकर काली चमकाना, उसकी कलम (चॉक मिट्टी की) की बारीक नोक करना, ताकि अक्षर सुडौल निकलें। हमारे बस्ते में रखी जो वस्तु हो उसे वही चाहिए। विरोध करने पर कहता था, ‘‘देख, अगर तूने कहना नहीं सुना, तो मेरे हाथ में जो तेरी राखी बंधी है ना, उसको दांत से तोड़कर फेंक दूंगा। तुझे ससुराल भी लेने नहीं आऊंगा।’’ हां, एक बात अवश्य थी; अगर इस प्रकार के झगड़े की भनक आजी मांय को लग जाती, तो वे लड़कों को ही डांटती थीं, हम लड़कियों को नहीं। मांय के सामने कोई भी भाई किसी बहन से ऊंची आवाज में नहीं बोल सकता था। हम बहुत सारे भाई-बहन थे। किस भाई की कौन सी बहन, सब तय हो जाता था, जिससे झगड़ते समय अपनी-अपनी बहनें, अपने-अपने भाइयों का साथ दे सकें।
राखी के दिन हमारे घर का माहौल सांझ होते-होते मेले जैसा हो जाता था। आजा मालगुजार थे। अत: गांव के हर बहन बेटी हमारे घर राखी बांधने आती थीं। घर के चारों दरवाजों से टोलियां ही टोलियां दिखाई पड़ती थीं। कोई गाड़ी दरवाजे से, कोई कचेरी दरवाजे से, कोई अगवाड़े से तो, कोई पिछवाड़े के दरवाजे से आते थे। हाथ की आरती में टिमटिमाता दीपक और थाली भर रंग-बिरंगी राखियां। बहनों के दस-बीस गज के घाघरों से आंगन बहुरंगी बगिया जैसे लगने लगता था। पैरों के झन-झन झांझर। राखी बांधकर भाइयों की आरती उतारते, बहनों के हाथ के कंगना खनकते थे। यह ध्वनि वातावरण को रसमय बना देती थी।
आंगन में कतारबद्घ बैठते थे आजा, दादा, बाबूजी, दाजी, भाई आदि लोग। साथ में बैठतीं, आजी मांय, बड़ी बाई ताकि हर बहन को उचित नेग मिले। आजी मांय दो दिन पहले से ही सेठ दाजी की दुकान से बहुत सारे ब्लाउस-पीस कटवा लेती थीं और ढाई गज की साड़ी बुलवा लेती थीं। सब बहन-बेटियों को कपड़ा, तो किसी को अठन्नी तो किसी को नगद पैसा भी देती थीं। पैसे की बात से मन रोमांचित हो उठता था। तब हमारे पास नगदी पैसे कहां होते थे। बस लड़कियों को राखी पर ही, आना, आधाना, धेला, तो पाई मिल जाती थी। मुझे तो सेठ दाजी के घर से मेरी पसन्द का फ्रॉक का कपड़ा और दुअन्नी मिलती थी। सबको राखी बांधे, तब ब-मुश्किल, दस-बारह आने हो पाते थे। उन्हें बड़े सम्हालकर रखना पड़ता था। भाई लोग आए दिन कहते, ‘‘तेरे पास पैसे हैं तो उधार दे दे। दशहरे पर दशहरा जीतने के बाद जो पैसे मिलेंगे उससे तेरी उधारी चुका देंगे और छेदवाला धेला ब्याज में दे देंगे।’’ हम बहनें अपनी सम्पत्ति आजी मांय के हवाले कर देते थे। क्योंकि तब घरों में पेटी अलमारी में ताले-चाबी लगाना अच्छा नहीं माना जाता था। आजी मांय हम सब बहनों के पैसे अलग-अलग रंग की   चिंदियों में बांध कर रख देती थीं। फिर भी आजी मांय की नजर चुराकर हम अपनी चिंदी की पोटली देख लेते थे कि कहीं पैसे कम तो नहीं हुए।
रक्षा-बंधन पर्व का आखरी दिन होता जन्माष्टमी। जो लोग किसी कारण से पूनम को राखी नहीं बांध पाते थे, वे इस दिन राखी बांधते थे। इस दिन भी गांव की बहुत सी बहनें आती थीं राखी बांधने। भील आवार की जितनी भी बहनें आती थीं। वे अपने हाथ से कच्चे सूत को रंगकर राखी व फुंदना बनाती थीं और बड़े मनोयोग से राखी बांधती थीं। उन्हें नहीं मालूम कि राखी या रक्षा बंधन का क्या अर्थ है। उन्हें तो बस इस बात की खुशी होती थी कि मालगुजार दाजी के बेटे उनसे राखी बंधवाते हैं, वे ससुराल में बड़ी ऊंची नाक रखकर यह बात कहती थीं। मुझे सावन की झरती बूंदों सा सुखद लगता था यह त्योहार, जहां बिना छुआछूत के राखी का पर्व मनाया जाता था। आज भी मैं अपने आंगन की वह रौनक, वह छवि, आंखों में बसाए हुए हूं और सावन की फुहार से उस प्रेम बेल को सींच लेती हूं, सरस सलोना सावन आया।

मां का दूध, बढ़ाए बुद्धि

Monday, August 1, 2011

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  विश्व स्तनपान सप्ताह - 1-7 अगस्त



जन्म के एक घंटे के भीतर शिशु को कराया गया स्तनपान अमृत का काम करता है। जानकारी और जागरुकता के अभाव में अधिकतर महिलाएं जन्म के तुरंत बाद स्तनपान नहीं कराती हैं। शहद और घुट्टी सरीखी गलत चीजों को बच्चे को चटाया जाता है, जो बच्चे के लिए हानिकारक साबित होती हैं। मां और बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराया जाए। इसकी पहल आज से ही करनी होगी।

जानकारी के मुताबिक भारत में जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराने की बात कहें तो यह आंकड़ा सिर्फ 23 प्रतिशत ही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि जन्म के बाद मां बच्चे को अपना गाढ़ा-पीला दूध पिलाती है, तो पांच वर्ष के अंदर होने वाली शिशु मृत्यदर में 22 फीसदी की कमी लाई जा सकती है। सामाजिक रूढ़ियों को दरकिनार   करते हुए वैज्ञानिक आधारों को  मानते हुए इसकी पहल आज से ही करनी होगी। तब यह आंकड़ा 23 से 100 फीसदी की दर को छू   सकेगा। इसके लिए जरूरी है कि मां स्वयं जागरुक हो और आगे आकर जन्म के बाद अपने शिशु को स्तनपान कराए।

क्यों जरूरी है जन्म के बाद का स्तनपान

जन्म के तुरंत बाद एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने के लिए इसलिए भी जोर दिया जाता है, क्योंकि इसके कई फायदे हैं। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह बात साबित भी हुई है। जन्म के तुरंत बाद यदि माता बच्चे को स्तनपान कराती है, तो आंवल गर्भाशय से जल्दी अलग हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि बच्चे द्वारा स्तन चूसने से गर्भाशय के चूसने की गति तेज हो जाती है। साथ ही प्रसव के पश्चात तीव्र रक्तस्त्राव की संभावना भी कम हो जाती है।

क्या है कोलेस्ट्रम
जन्म के समय के तीन-चार दिन तक गाढ़े-पीले रंग का दूध बनता है, जिसे कोलेस्ट्रम कहते हैं। यह नवजात शिशु के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद एंटीबॉडीज और पोषक तत्व बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं जो बच्चे के लिए जन्मभर काम आता है। यही वजह है कि इसे पहला टीका भी कहा जाता है। जन्म के तुरंत बाद मां को अपना दूध शिशु को अवश्य देना चाहिए। यह पचने में भी हल्का होता है, साथ ही बच्चे की भी पाचनशक्ति बढ़ती है।

स्तनपान के फायदे-
- जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चे को यदि मां अपना दूध पिलाती है, वह बच्चे के जन्मभर काम आता है। यही वजह है कि इसे पहला टीका भी कहा जाता है।
- बच्चे का बौद्धिक विकास सही ढंग से होता है। पूरक आहार के साथ मां बच्चे को दो साल की उम्र तक स्तनपान करा सकती है। 
- स्तनपान कराने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है।
- यह गर्भावस्था के दौरान बढ़े वजन को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- स्तनपान माहवारी की वापसी में देरी करने में मदद करता है। इस तरह यह बच्चों के बीच में अंतर रखने का प्राकृतिक उपाय है। बच्चा भी हष्ट-पुष्ट बनता है।


बॉटल को कहें न..
चाहे आप सफर क्यों न कर रही हों, लेकिन बच्चे को बॉटल से दूध पिलाने की आदत बिल्कुल भी न डालें। बॉटल से दूध पिलाने पर बच्चे को असहजता तो होती ही है, साथ ही इन्फेक्शन का भी खतरा हो सकता है। सफर के दौरान भी आप सुरक्षित और आरामदायक स्थान पर बैठकर स्तनपान करा सकती हैं। जहां तक संभव हो तो छ: महीने तक घर से कम ही बाहर जाएं। छ: महीने के बाद यदि बच्चे को लेकर बाहर जाना पड़ता है, तो पूरक आहार से काम चलाएं। बच्चे को छ: महीने के बाद ऊपर का दूध चम्मच की सहायता से पिला सकती हैं।


यूं कराएं स्तनपान-
स्तनपान  कराने के दौरान यह ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि बच्चे और मां की पोजीशन ठीक रहे। खडेÞ होकर, उकडूं बैठकर, बच्चे को बैठी हुई स्थिति में लेकर बिल्कुल भी स्तनपान न कराएं। माता ठीक से बैठकर अपनी गोदी में बच्चे को लेकर स्तनपान कराए। यह भी बेहद जरूरी है कि दूध पीते समय बच्चे की नाक खुली रहे, जिससे वह ठीक ढंग से सांस ले सके। दूध पिलाते समय माता बच्चे के सिर पर प्यारभरा हाथ फेरती रहे। इसका फायदा यह होता है कि बच्चे के मस्तिष्क से ऐसे हारमोन्स निकलते हैं, जो उसे दिमागी रूप से तेज बनाते हैं। इतना ही नहीं उससे लगातार बतचीत भी करती रहें। एकाग्रचित होकर स्तनपान कराएं। ऐसा करने से मां को भी खूब दूध निकलता है। माता दिन और रात को मिलाकर कम से कम बच्चे को 8-10 बार दूध अवश्य पिलाए। रात में भी बच्चे की जरूरत के अनुसार दूध पिलाती रहें। छ: महीने तक मां बच्चे को सिर्फ अपना ही दूध पिलाए। इसके बाद पूरक आहार देना शुरू करें।

कामकाजी महिलाएं ये करें-
जो महिलाएं कामकाजी हैं। वे भी मैटरनिटी लीव लेकर छ: महीने तक घर पर रहकर बच्चे को समय दें और छ: महीने तक लगातार स्तनपान कराएं। यदि छ: महीने के बाद आफिस ज्वाइन करना हो तो भी अपना दूध बच्चे को पिला सकती हैं। आफिस जाने से पहले महिलाएं एक साफ बर्तन में दूध निकालकर ढककर रख दें। चाहे तो रेफ्रिजिरेटर में भी रख सकती हैं। बच्चे को भूख लगने पर घर का कोई भी सदस्य चम्मच की सहायता से बच्चे को दूध पिला सकता है, लेकिन साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। घर के सदस्य इस बात का पूरा ध्यान रखें कि बोतल से बिल्कुल भी बच्चे को दूध न पिलाएं। सफर में भी यदि बच्चे को दूध पिलाना है, तो चम्मच से दूध   पिलाने की आदत डाल सकते हैं।


गलतफहमी न पालें-

कुछ महिलाएं अपनी कद-काठी को ध्यान में रखकर यह निर्णय लेती हैं कि अधिक समय तक स्तनपान कराने से उनका फिगर गड़बड़ा जाएगा। यह बिल्कुल गलत है। यदि मां अपने बच्चे को स्तनपान कराती है, तो उसका शरीर भी स्वस्थ्य और अच्छा रहता है। शारीरिक बनावट में कोई परिवर्तन नहीं आता है।


न निकले दूध तो...

जन्म के बाद मां को ठीक से दूध नहीं उतरता है तो वह बच्चे को बार-बार स्तनों से लगाए। उसका शरीर अपने शरीर से चिपकाकर रखे। उसे प्यार करे। भावात्मक लगाव लगाए। बार-बार  प्रक्रिया दोहराने के बाद भी दूध नहीं निकलता है तो फिर वैज्ञानिक पद्धति से दूध को निकाला जा सकता है।


लैक्टेशन / दुग्धपान-
यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो सभी मादा स्तनपायी प्राणियों में होती है और मनुष्यों में इसे आम तौर पर स्तनपान या नर्सिंग कहा जाता है। आॅक्सीटोजन हारमोन्स के स्त्रावण से दूग्ध स्त्रावण की प्रक्रिया जन्म लेती है। गैलक्टोपोइएसिस दूध उत्पादन को बनाये रखने को कहते हैं।

कम वजन के शिशु के लिए फायदे-

- शिशु को शक्कर की कमी एवं तापमान में कमी से बचाता है।
- मृत्यु की संभावना को कम करता है। 
-  शिशु की सर्वोत्तम वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है।
- संक्रमणों से बचाता है।
- स्तनपान से डायरिया होने के खतरे कम होते हैं।
-  एलर्जी से बचाता है।

कृत्रिम दूध और मां के दूध में अंतर -
मां के दूध में अनेक गुणधर्म हैं, जिनका अनुकरण करना नामुमकिन है। कृत्रिम दूध में मां के दूध के जैसी सामग्री कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट और विटामिन इत्यादि डाल दिए जाते हैं, किंतु इनकी मात्रा नियत रहती है। मां के दूध में इनकी मात्रा बदलती रहती है। कभी मां का दूध गाढ़ा रहता है तो कभी पतला, कभी दूध कम होता है तो कभी अधिक, जन्म के तुरंत बाद और जन्म के कुछ हफ्तों बाद या महीनों बाद बदला रहता है। इससे दूध में उपस्थित सामग्री की मात्रा बदलती रहती है, और यह प्रकृति का बनाया गया नियम है कि मां के दूध में बच्चे की उम्र के साथ बदलाव होते रहते हैं। भौतिक गुणवत्ता के अलावा, मां के दूध में अनेक जैविक गुण होते हैं, जो कि कृत्रिम दूध में नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए मां के दूध देने से मां-बच्चे के बीच लगाव, मां से बच्चे के रोग से बचने के लिए प्रतिरक्षा मिलना और अन्य।


फैक्ट फाइल-
- मप्र में शिशु मृत्युदर, बाल मृत्युदर एवं मातृ मत्युदर का अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से अधिक है। एनएफएचएस-3 के आंकड़ों पर गौर करें तो स्थिति काफी चिंताजनक है। राज्य में तीन वर्ष से कम उम्र के 60 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं। 5 वर्ष से कम आयु के 35 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं, वहीं 12.6 प्रतिशत बच्चे अति कुपोषित हैं। मप्र में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या 10 लाख के करीब है।
- अन्तरराष्ट्रीय हेल्थ  जर्नल लेंसेट के 2003 के आंकड़ों के मुताबिक शिशु के जन्म के 6 महीने तक स्तनपान और उसके बाद साथ-साथ संपूरक आहार देने से शिशु मृत्युदर में 19 फीसदी की कमी लाई जा   सकती है।
- मप्र में सिर्फ 15 फीसदी बच्चे ही ऐसे होते हैं, जिन्हें जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध पिलाया जाता है।
-  मप्र में संस्थागत प्रसव के आंकड़ों पर गौर करें तो यह पहले से चार गुना बढ़ा है। लोगों में जागरुकता का स्तर यदि यूं ही बढ़ता गया तो शिशु मृत्युदर में आने वाले समय में कमी लाई जा सकेगी।



 जन्म के बाद बच्चे को दिया गया मां का गाढ़ा पीला दूध बच्चे के लिए जन्मभर काम आता है। उसमें रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है और उसका बौद्धिक विकास भी सही ढंग से होता है। स्वयं मां और घर के सदस्यों को इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा कि जन्म के एक घंटे के भीतर मां अपना दूध बच्चे को पिलाए। इतना ही नहीं छ: महीने तक सिर्फ बच्चे को मां का ही दूध मिलना चाहिए। इसके अलावा उसे कुछ भी नहीं दिया जाए।
डॉ. शीला भुम्बल, शिशु रोग विशेषज्ञ

प्रदेश में अभी भी जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराने को लेकर जो आकड़ें सामने आ रहे हैं उतने अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं। सरकार को इस तरफ और प्रयास करने होंगे। साथ ही लोगों को भी जागरुक करना होगा। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता इस काम में सबसे अहम भूमिका निभा सकती हैं।
तान्या गोल्ड्नर, राज्य प्रमुख यूनिसेफ