डॉ. अंकिता मिश्रा।
हमें रंग, मौसम और त्योहारों
के नाम बचपन में ठीक से पता नहीं होते थे, लेकिन उनकी विशेष
छाप मन में बसी होती थी। हर एक रंग, मौसम और त्योहार को
अपने अनुसार नाम देते थे। हमारी ये अभिव्यक्ति बहुत ही अनमोल और सहज होती थी।
हमें पता नहीं होता कि कौन से माह में कौन सी तिथि को फलां त्योहार होता था, लेकिन इतना अवश्य ज्ञात होता था कि जब सर्दी हमसे विदा लेती है तो होली
आती है, वारिश की दस्तक रक्षाबंधन का पैगाम लाती और सर्दी
की आहट ठंठी के मौसम का संकेत देती। हालांकि, हमें सर्दी के
आने की फिक्र नहीं सताती थी, लेकिन इस बात की बेसब्री रहती
थी कि काश! सर्दियां जल्दी से आ जाएं,
मीठीं-मीठीं मटर की फलियां खाएं, ताजा गन्ने का रस पिएं और
कड़ाही से निकलते ताजे गुड़ की यादें तो आज भी मुंह में पानी ला देती हैं। जीवन की
भागदौड़ भरी जिंदगी में बीते हुए पलों को याद करती हूं तो मन को सुकून देने वाली ठंडक
का अहसास होता है। काश! फिर से लौट आते वे दिन। खैर छोडि़ए, ये सब बातें तो अब यादों के संदूक में ही रहेंगी,
जब-जब यादों का बक्सा खुलेगा तो एक नई ताजगी का अनुभव देगा।
बदलती
पर्यावरणीय दशाओं, बेमौसम होते वातावरण और
क्रत्रिम फसलों की पैदावार ने सब कुछ बदल दिया है। आज प्रत्येक मौसम की नई
परिभाषा गढ़ी जाने लगी है। वह दिन दूर नहीं जब होली, दीपावली, रक्षाबंधन, मकर संक्रांति,
बसंत पंचमी इत्यादि; तिथिवार उत्सव बनकर रह जाएंगे। ऐसा
इसलिए कह रहे हैं क्योंकि प्रकृति दिन-प्रतिदिन अपना रूप बदल रही है, जो संकेत हमें पहले मिलते थे, वे सब बदल गए हैं।
बसंत के मौसम से पहले पतझड़ होता और फिर
पेड़ों में नई कोपलें फूंटती थीं जोकि इसका संकेत देती थीं कि प्रकृति अपना
श्रृंगार कर रही है और दुल्हन की तरह सजने को तैयार है। आम के पेड़ों पर फूलने
वाली मंजरी और हवा के झोके में लहलाती डालियां इसका इशारा करती कि सभी इस मस्त
पवन में बहने को तैयार हैं। ये सब देखकर मन आनंदित हो उठता था। आम के पेड़ों पर
फूली आम मंजरी इस बात का संकेत दे रही है कि इसके बाद ग्रीष्मकाल आएगा और पेड़ आम
के फलों से भर जाएंगे। कोयल का मीठा स्वर और छतों पर नृत्य करने वाले मोर हमें
बताते कि यह माह सभी के लिए खास है। सब कुछ परिवर्तित होने वाला है। नए रंग और रूप
में चंहु ओर नया आभा मंडल नजर आएगा। इसीलिए तो इस मौसम को बसंत कहा जाता है। ऋतुओं
का राजा ‘बसंत’ इसीलिए हम सबके लिए खास है। बस इंतजार है कि
हम सबके जीवन में ‘बसंत’ यूं ही दस्तक
देता रहे।
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