मौसम ने ली अंगड़ाई

Friday, March 9, 2018


आई आई बसंत ऋतु मोर बोले
जैसे अमवां की डाली कोयल बोले



चहुं ओर अजब सी छटा छा जाती है। धरती भी सुनहरी चादर ओढ़े नजर आती है। पेड़ों में नईं  कोपलें फूंटने लगती हैं। पेड़ आनंदित हो झूमने लगते हैं। बागों में पक्षी चहचहाने लगते हैं। मोर पंख पसार नाचने की उतावले हो उठते हैं। फूलों पर भंवरों की गूंज मन को मोह लेती है। ऐसा नजारा हमें आम दिनों में नजर नहीं आता है, बल्कि खास ऋतु के आगमन का न्‍यौता होता है यानि ऋतुओं के राजा बसंत के आगमन का संदेश। प्रकृति का यही बदलता हुआ स्‍वरूप बरबस ही सबका मन मोह लेता है। सर्दी विदा लेती है और गर्मी की दस्‍तक देती बसंत ऋतु अपने दामन में सभी के लिए खुशियां लेकर आती है।
          खेतों में फसल पक जाती है, गेहूं के सुनहरे दानें धरती पर बिखरने को आतुर नजर आते हैं । स्‍वर्ण चादर ओढ़े धरती की छटा देखते ही बनती है। फूलों की कलियां नई उमंग को लिए और रंगों की विशेष छटा के साथ आभा विखेरती हैं। समूचा वातावरण फूलों की मन मोहती महक और आकर्षक छटा के साथ सभी को अपनी ओर आकर्षित करती प्रतीत होती है। सरसों के खेत में खिले पीले फूल बसंती छटा को समेटे पूरे माहौल को आत्‍मविश्‍वास से लबरेज दर्शातें हैं। रंगों की नित नईं कलाएं अपने प्रदर्शन से सभी का मन मोहने के लिए आतुर नजर आती हैं। नई उमंग, आकर्षण, उत्‍साह और आत्‍मविश्‍वास से लबरेज इस ऋतु के बारे में जितना भी कुछ कहा जाए वह फीका ही प्रतीत होता है।
लागे सब कुछ नया-नया
जिस प्रकार से विवाहित स्त्रियां सजने-संवरने नया श्रृंगार करती हैं और नए वस्‍त्र धारण करती हैं, वैसा ही बसंत के आगमन पर प्राकृतिक वातावरण में हमें बदलाव नजर आता है। पीले रंग की चादर ओढ़े धरती ऐसी प्रतीत होती है जैसे उसने यौवन में कदम रखा हो। हर तरह से स्‍वयं को निखारने का प्रयास करती नजर आती है। चाहे गीतों की धुन से स्‍वयं को गुंजायमान रखने की कोशिश हो या फिर पर खिलते फूलों से अपने बदन महकती ताजगी का अहसास कराने की बात हो। हर तरफ सब कुछ नया-नया नजर आता है। इंतजार खत्‍म होता है और मिलन की घड़ी आ जाती है। पशु-पक्षियों की चहचहाट और उनके कलरव में मिलन की खुशी का संदेश सुनाई देता है। अपना देश छोड़कर सर्दियों में प्रवास के लिए गए पक्षी वापस अपने वतन लौट आते हैं। प्रकृति की मनमाहेक छटा में हम भी कुछ यूं ही डूब जाएं और इसका आनंद लें। यही जीवन का सार।

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