देर आए, दुरुस्त आए

Saturday, November 4, 2017


अंकिता
बाल विवाह और दहेज हमारे समाज में कोढ़ की तरह फैली हुईं ऐसी कुरीतियां हैं जिन पर अंकुश लगाना अति आवश्यक है। नितीश सरकार ने अपने कार्यकाल में जो तीन अहम फैसले लिए हैं वे सामाजिक विकास में उत्प्रेरक का कार्य करेंगे बशर्ते उन पर जमीनी स्तर पर अमल हो। शराब बंदी ने जहां परिवार को आर्थिक, सामाजिक और व्यक्तिगत विकास की ओर अग्रसर किया है, वहीं बाल विवाह और दहेज प्रथा उन्मूलन का कार्य प्रदेश को एक नई दिशा प्रदान करेगा। बिहार सरकार ने पूर्ण रूप से दहेज बंदी और बाल विवाह को रोकने के लिए जो कदम उठाए हैं वे सराहनीय हैं। इस तरह के प्रयास को  बिहार में ही क्‍यों बल्कि समूचे देश में लागू किया जाना चाहिए।

 बाल विवाह और दहेज प्रथा उन्मूलन के लिए बिहार सरकार ने महात्मा गांधी की 148वीं जयंती यानि के 2 अक्टूबर 2017 को कदम उठाया। इसके लिए समाज और सामाजिक संस्थाओं एवं सरकारी निकायों को मिलकर अपनी भूमिका को निभाना चाहिए। अशिक्षा और गरीबी इसके मूल में छिपी ऐसी रुकावटें जो इस तरह की बुराईयों की ओर हमें अग्रसर करती हैं। उदाहरण के तौर पर यदि किसी गरीब परिवार में बेटी का जनम हुआ है और सामाजिक ताना-बाना इस प्रकार का है कि बेटी का ब्याह जल्द  से जल्द करने पर मजबूर करता है। गरीब मां-बाप को बेटी का ब्याह के अलावा और कुछ नहीं सूझता, न तो उसकी शिक्षा और न ही उसके उसके शारीरिक विकास से जुड़े मापदंड। कम उम्र की लड़कियों का अधेड़ उम्र के युवकों के साथ विवाह कर दिया जाता है। हमारे समाज के अधिकांश लोग विवाह के लिए सुकोमल कुवांरी कली ही चाहते हैं। बेटी की मनोस्थिति क्या  है इसके बारे में कोई नहीं सोचता है। कम उम्र की बेटी को पिता अधेड़ उम्र के युवक के साथ इसलिए ब्याह देता है कि उसके पास देने के लिए इतना दहेज नहीं है जोकि सुकुमार राजकुमार अपनी बेटी के लिए खोज सके। बारह-तेरह की उम्र में बेटियों को चूल्हा–चौका सिखाकर डोली में बिठाकर विदा कर देना ही मां-बाप की जिम्मेदारी नहीं है, उनके सर्वांगीण विकास को लेकर माता-पिता को ही सोचना होगा। बेटियां बेटों से कम नहीं हैं। होनहार हैं, बस उन्हें एक मौका चाहिए। बुराई से युक्त सामाजिक ताने-बाने को तोड़ना होगा और बेटियों को शिक्षित करना होगा। उन्‍हें उच्च  शिक्षा की ओर ले जाना होगा, जहां वे अपने भविष्य के सपने बुन सकें। शिक्षा ही वो मूल मंत्र है, जिससे हम इस कुरीति को तोड़ सकते हैं। इस साहसिक कदम को आगे बढ़ाने में ऐसे परिवारों और लोगों की मदद करनी होगी जोकि किसी मजबूरी में अपनी बेटी को खेलने-कूदने की उम्र में ही डोली में बिठा देते हैं। सरकार और स्‍वयं सेवी निकायों को इसको लेकर अपनी तटस्थता दिखानी होगी। आगे भी इस मुद्दे पर मंथन जारी रहेगा....

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