हम लड़कियां बदलेंगी दुनिया

Saturday, June 11, 2011

हर क्षेत्र में लड़कियों ने अपना नया मुकाम तय किया है। शिक्षा, बिजनेस, फिल्म, मॉडलिंग, प्रशासन और राजनीतिक से लेकर हर एक फील्ड में अपनी अहम जगह बनाई है। इतना ही नहीं दिन-दूनी, रात-चौगनी रफ्तार से बढ़ रही लड़कियों के जीने का तरीका भी पहले की आम लड़की के मुकाबले अलग है। लड़कों के साथ बात करने, काम करने और उनका सामना करने में वे बिल्कुल भी नहीं झिझकती हैं। एक जमाना था, जब कोई लड़की किसी लड़के से अगर बात करे, तो आमने-सामने वाले उसके चरित्र पर अंगुली उठाने में भी नहीं कतराते थे। अब आलम यह है कि लड़कियों ने स्वयं को साबित करके सभी की बोलती बंद कर दी है। लड़कियां लड़कों के सामने पूरे आत्मविश्वास और मजबूती से खड़े होने का मद्दा रखती हैं। यही वजह है कि समाज ने भी उनकी क्षमताओं को स्वीकारा है। छोटे-छोटे गांव से निकलर लड़कियां शहर की ओर रुख कर रही हैं। बेहतर तालीम हासिल करके अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। इंजीनियरिंग, मेडिकल, शिक्षा और प्रशासनिक पदों पर अपने को शोभायमान कर रही हैं। आईएएस 2011 की टॉपर एस दिव्य दर्शिनी ने भी अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करके लड़कियों की रोल मॉडल बनी हैं।  दो साल पहले भी सुभ्रा श्रीवास्तव ने पहली रैंक प्राप्त करके महिलाओं में प्रशासनिक बागडोर थामने का जज्बा पैदा किया था। इतना ही नहीं अपनी अभिव्यक्ति को भी पूरा तवज्जो दे रही हैं। पढ़ाई से लेकर शादी और शादी के बाद की लाइफ स्टाइल जीने का तरीका भी वे स्वयं तय कर रही हैं। प्लानिंग और मैनेजमेंट करना भी उन्हें खूब आता है। करियर और पारिवारिक जीवन में संयोजन कैसे बिठाना है। यह भी खूब अच्छी तरह से जानती है। यही कारण है कि शादी से जुड़े मुद्दों पर वे खुलकर बोलने को तैयार हैं। किस तरह का लड़का चाहिए। उसमें क्या गुण होने चाहिए, एकेडेमिक और फैमिली बैकग्राउंड को भी अपनी पसंद में शामिल कर रही हैं। आज की लड़कियां आत्म निर्भर हैं। अपनी तरह से जीना जानती है। उन्हें क्या पहनना है, क्या खाना है, भविष्य की दिशा क्या हो। इसका निर्णय वे स्वयं लेना चाहती है। समाज को इस बात को स्वीकारना होगा। काफी हद तक इसका असर सामाजिक परिवेश में दिखाई भी दे रहा है। पहले के समय में यदि कोई लड़की अपनी पसंद से शादी करने के लिए परिवार के सामने प्रस्ताव को रखती थी, तो उसे आड़े हाथों लेकर उसकी भावनाओं का दमन कर दिया जाता था, लेकिन आज आलम यह है कि लड़कियां अपनी पसंद और न पसंद के बारे में खुलकर बात करने लगी हैं। लव मैरिज करने पर परिवार का ही नहीं समाज का भी सहयोग मिलने लगा है। सिर्फ कुछ अपवादों को छोड़कर। पिछले पांच सालों में 15-20 मामले मैंने स्वयं देखे हैं, जिनमें लव मैरिज को तवज्जो मिला। जहां पहले लोग लव मैरिज के नाम पर शादी में शामिल होने से कतराते थे, वही अब वर-वधू को आर्शीवाद देने के लिए स्वयं आगे आ रहे हैं। यह सब तभी संभव हुआ है, जब सामाजिक परिवेश में रहते हुए लड़कियों ने अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया। लेकिन सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए उन्होंने बहुत कुछ पीछे भी छोड़ दिया है, शायद उसकी भरपाई वे जीवनभर नहीं कर सकेंगी। प्यार के छल रूपी जाल में फंसकर उन्होंने अपनी भावनाओं और अस्तित्व को भी खतरे में डाल दिया। कौन सी सफलता के लिए उन्होंने अपने आप को इस तरह के जाल में फंसाया। इसका जवाब तो एक लड़की स्वयं दे सकती है। मेट्रो कल्चर की भागदौड़ में शामिल होकर उन्होंने स्त्री होने के अस्तित्व को भी खतरे में डाला है। नेम और फेम के पायदान चढ़ते हुए उन्होंने इस बात की भी परवाह नहीं की, लड़की होने के मायने क्या हैं। इस धरती पर उनके होने की वजह क्या है। उनका दायरा क्या है। व्यक्तिगत जीवन और प्रोफेशनल लाइफ को उन्होंने एक ही भाव में तौला, जिसने समूची स्त्री जाति के सामने प्रश्न खड़े कर दिए हैं। स्वतंत्रता के मायनों को न समझते हुए उन्होंने अपनी स्वतंत्रता को स्वछन्दता में तब्दील कर दिया। मान-मर्यादा की चिंता किए बगैर ऐसे काले कारनामें उनके द्वारा  किए गए हैं, जिन्हें जानकर और पढ़कर एक सीधी-सादी लड़की का मन भी कांप उठे। एक लड़की को सही और गलत निर्णय लेने का हक है, लेकिन अपनी निजता को बचाए रखने की जिम्मेदारी भी उसी की है। यदि इस बात को दौलत की भूखी बालाओं ने नहीं समझा तो आने वाले समय में उनके लिए राहें आसान नहीं, बल्कि और कठिन हो जाएंगी। उनकी वजह से सीधी-सादी बालाओं पर भी समाज लांछन लगाने में नहीं कतराएगा। उनका समाज में जीना दूभर हो जाएगा। हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए ‘जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाएं। पैसे की दौड़ में शामिल होकर अपनी अमूल्य धरोहर को पीछे छोड़कर कहां जाना चाहते हैं। इसका निर्णय स्वयं लेना होगा।

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