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Tuesday, November 29, 2011

1 दिसंबर - एड्स दिवस पर विशेष

गांधी मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबॉयोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. दीपक दुबे का कहना है कि 1986 में दिल्ली में एड्स को लेकर सबसे पहली मीटिंग हुई थी। तब कोई ऐसी स्थिति को लेकर आश्वस्त ही नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। मीटिंग में मौजूद एक अधिकारी ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर गर्व करते हुए यहां तक कहा था कि हमारे देश के लोगों का चरित्र बहुत अच्छा है। एड्स तो यहां के लोगों को हो ही नहीं सकता है, लेकिन जो स्थिति आज है उससे सभी वाकिफ हैं।

मप्र की स्थितिमप्र का इंदौर एचआईवी संक्रमण के मामले में पहले नंबर पर है। इसके बाद सतना, जबलपुर और भोपाल का नंबर आता है। छोटे शहरों की बात करें तो खंडवा, बुरहानपुर, मंदसौर और नीमच आते हैं। ग्वालियर शहर में प्रदेश के अन्य शहरों के मुकाबले एचआईवी संक्रमितों की संख्या कम है। ट्रक चालक और सेक्स वर्कर्स की भूमिका एचआईवी फैलाने में सबसे ज्यादा है। नेशनल हाइवे के किनारे वाले शहरों में एचआईवी फैलने की संभावना अन्य शहरों के मुकाबले अधिक रहती है। मप्र में यह स्थिति 10 प्रतिशत पर ही स्थिर है।

नो कंडोम , नो सेक्स
कलकत्ता के सेक्स वर्कर्स के लिए ‘नो कंडोम नो सेक्स’ का कॉन्सेप्ट लागू किया गया था। इसके चलते अन्य बड़े शहरों के मुकाबले कलकत्ता में एचआईवी संक्रमण का खतरा कम हो गया था। इसी कॉन्सेप्ट को अन्य जगह भी लागू किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यदि स्वस्थ्य जीवन जीना है तो ऐहतियात तो बरतने ही होंगे।

सकारात्मक पहलू
मंदसौर जिला बाछड़ा जाति बाहुल्य जिला है। एचआईवी एड्स को फैलाने में इस जाति की प्रमुख भूमिका रही है, लेकिन जागरुकता कार्यक्रमों और जनचेतना का प्रभाव इस जाति पर पड़ा है। यही वजह है कि इस जाति के कई परिवारों ने लड़कियों से पारंपरिक काम करवाना भी बंद कर दिया। फिलहाल जाति के कुछ लोगों ने ही इस तरह का सकारात्मक कदम उठाया है, लेकिन यह सराहनीय है।

एड्स की वैक्सीन और उपचार
वर्तमान समय में यदि एड्स के कारगर टीके की बात करें, तो वह मौजूद नहीं है। एड्स की वैक्सीन क्यों नहीं बन पा रही है, इसके पीछे वायरस की बदलती दशाएं हैं। नए अनुसंधानों के जरिए कुछ कारगर दवाएं बनाई गई हैं, जो काफी हद तक स्थिति को काबू करती हैं। प्रेग्नेंट महिलाएं जिन्हें एड्स होता है, यदि समय पर उनकी पहचान हो जाती है तो उन्हें नेवीरेपी मेडिसिन दी जाती है। इसके जरिए मां से बच्चे को एड्स होने की संभावना 30 से घटकर 5 प्रतिशत हो जाती है। देश ही नहीं प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर भी पीपीटीसी (प्रिवेंटिंग मदर टू चाइल्ड ट्रांसमिशन) सेंटर खोले जा रहे हैं। इसके जरिए यदि गर्भावस्था या इससे पहले ही माता की काउंसलिंग हो जाती है और ऐसी महिलाओं की पहचान हो जाती है तो मां से बच्चे को होने वाले एचआईवी एड्स के खतरे को कम किया जा सकता है।

बचाव
यदि कोई व्यक्ति एचआईवी पॉजीटिव है, तो उसे घबराने की जरूरत नहीं है; क्योंकि स्वस्थ जीवन शैली के जरिए वह लंबे समय तक जीवित भी रह सकता है। अपने साथी से वफादरी बरते। अपने आप को समाज से अलग नहीं समझे। एक आम व्यक्ति की तरह की अपना जीवन जिए। एचआईवी पॉजीटिव भी समाज का ही हिस्सा हैं।

सात से तीस लाख का सफर
डॉ. दुबे बताते है कि देश में 1987 में सबसे पहले चेन्नई के सेक्स वर्कर के बीच एड्स की पुष्टि हुई थी। इससे प्रभावितों की संख्या महज सात थी जो आज बढ़कर करीब 32 लाख तक पहुंच गई है। इसके पीछे मुख्य कारण असुरक्षित यौन संबंध ही है।

प्रेग्नेंट महिलाएं और एड्स
एचआईवी प्रेग्नेंट महिलाओं से उनके बच्चों में पहुंच जाता है, लेकिन ऐसा केवल एक तिहाई मामलों में ही होता है। हर प्रेग्नेंट महिला को अपना एचआईवी टेस्ट जरूर कराना चाहिए। ऐसी महिलाओं को डॉक्टर से लगातार सलाह करनी चाहिए।  जन्म लेने के बाद बच्चे का एचआईवी टेस्ट किया जा सकता है, लेकिन इससे यह पता नहीं लग सकता कि बच्चे को इन्फेक्शन है या नहीं, क्योंकि यह टेस्ट एचआईवी एंटीबॉडी टेस्ट होता है और एचआईवी पॉजीटिव मां से पैदा होने वाले हर बच्चे के शरीर में जन्म के वक्त एचआईवी एंटीबॉडी होते ही हैं। इनमें से जो बच्चे एचआईवी पॉजीटिव नहीं होते, वे डेढ़ साल की उम्र तक एचआईवी एंटीबॉडी छोड़ देते हैं। ऐसे में 18 महीने के बाद ही बच्चे का टेस्ट कराया जाए तो अच्छा है। वैसे, पीसीआर टेस्ट से तीन महीने के बच्चे के बारे में भी पता लग जाता है कि वह एचआईवी पॉजीटिव है या नहीं।

क्या है एड्स
ए ड्स का पूरा नाम है एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम। न्यूयॉर्क में 1981 में इसके बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ समलिंगी अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए। इलाज के बाद भी रोग ज्यों का त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी थी। फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी और इसे नाम दिया गया ‘एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम’ यानि एड्स। विश्व में ढाई करोड़ लोग अब तक इस बीमारी से मर चुके हैं और करोड़ों अभी इसके प्रभाव में हैं। अफ्रीका पहले नम्बर पर है, जहां एड्स रोगी सबसे ज्यादा हैं। भारत दूसरे स्थान पर है। भारत में अभी 1.25 लाख मरीज हैं, प्रतिदिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। भारत में पहला एड्स मरीज 1986 में मद्रास में पाया गया।
एचआईवी   
 एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) एक ऐसा वायरस है, जिसकी वजह से एड्स होता है। यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। जिस इंसान में इस वायरस की मौजूदगी होती है, उसे हम एचआईवी पॉजीटिव कहते हैं। आमतौर पर लोग एचआईवी पॉजीटिव होने का मतलब ही एड्स समझने लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। एचआईवी किसी मनुष्य को 8 स्टेज से होते हुए एड्स तक पहुंचाता है। यह सिर्फ 4 तरीके से होता है। अलग-अलग विपरीत लिंगों से संभोग, उनके खून को चढ़ाना, खून चढ़ाने वाले इंजेक्शन सिरिंज का उपयोग करना और गर्भावस्था और प्रसव के पूर्व के दौरान संभोग मुख्य है, मरीज के साथ खाने-पीने या किसी प्रकार के बाहरी संबंध से यह बीमारी नहीं फैलती लेकिन जेल और पागलखाने में होमोसेक्सुअलटी से यह फैल सकती है।

काउंसलिंग और केयर
एचआईवी टेस्ट और काउंसलिंग के लिए सरकार ने पूरे देश में 5 हजार इंटिग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) बनाए हैं। इन सेंटरों पर व्यक्ति की काउंसलिंग और उसके बाद बाजू से खून लेकर जांच की जाती है। यह जांच फ्री होती है और रिपोर्ट आधे घंटे में मिल जाती है। आमतौर पर सभी जिला अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और कुछ कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों पर यह सुविधा उपलब्ध है। यहां पूरी जांच के दौरान व्यक्ति की आइडेंटिटी गुप्त रखी जाती है। पहले रैपिड या स्पॉट टेस्ट होता है, लेकिन इस टेस्ट में कई मामलों में गलत रिपोर्ट भी पाई गई है। इसलिए स्पॉट टेस्ट में पॉजीटिव आने के बाद व्यक्ति का एलाइजा टेस्ट किया जाता है। एलाइजा टेस्ट में कन्फर्म होने के बाद व्यक्ति को एचआईवी पॉजीटिव होने की रिपोर्ट दे दी जाती है।

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