बड़ी रोचक है पटाखों की कथा

Saturday, November 5, 2011


 दीवाली का त्योहार हिन्दुओं का सबसे बड़ा और प्रमुख त्योहार है। दीवाली का त्योहार हो और पटाखे न छोड़े, आतिशबाजी न करें, ऐसा शायद संभव ही नहीं लेकिन बढ़ते पदूषण और पर्यावरणीय दशाओं को ध्यान में रखते हुए हमें ऐसा करना होगा। बच्चों आप लोगों के मन यह प्रश्न भी उठता होगा कि आतिशबाजी की शुरुआत कैसे हुई। चलिए आपको पटाखों के बारे में ऐसी ही रोचक जानकारी देते हैं।
दरअसल पटाखों का आविष्कार एक दुर्घटना के कारण चीन में हुआ। मसालेदार खाना बनाते समय एक रसोइए ने गलती से साल्टपीटर (पोटैशियम नाईट्रेट) आग पर डाल दिया था। इससे उठने वाली लपटें रंगीन हो गईं, जिस से लोगों की उत्सुकता बढ़ी। फिर रसोइए के प्रधान ने साल्टपीटर के साथ कोयले व सल्फर का मिश्रण आग के हवाले कर दिया, जिससे काफी तेज आवाज के साथ रंगीन लपटें उठी। बस, यहीं से आतिशबाजी यानी पटाखों की शुरुआत हुई। वैसे पटाखों का पहला प्रमाण वर्ष 1040 में मिलता है, जब चीनियों ने इन तीन चीजों के साथ कुछ और रसायन मिलाते हुए कागज में लपेट कर ‘फायर पिल’ बनाई थी।
आतिशबाजी को रंगीन बनाने के लिए उसमें स्ट्रोंशियम और बोरियम नामक धातुओं के लवणों का इस्तेमाल किया जाता है, इन्हें पोटैशियम क्लोरेट के साथ मिलाते हैं। स्ट्रोंशियम नाइट्रेट लाल रंग पैदा करता है जबकि स्ट्रोंशियम काबोर्नेट पीला रंग उत्पन्न करता है। बेरियम के लवणों से हरा रंग तथा स्ट्रोंशियम सल्फेट से हल्का आसमानी रंग पैदा होता है। इस तरह आतिशबाजी के दौरान अनेक रंग पैदा हो जाते हैं जो उसे खूबसूरत बनाते हैं।

यूरोप में सबसे पहल चलन में आए पटाखे-
खैर, पटाखे बनाने की कला भारत सहित अन्य पूर्वी देशों को भी आती थी। यूरोप में पटाखों का चलन सबसे पहले वर्ष 158 में हुआ था। यहां सबसे पहले पटाखों का उत्पादन इटली ने किया था। जर्मनी के लोग युद्ध के मैदानों में इन बमों का इस्तेमाल करते थे। चीन के लोग किसी समारोह आदि में इन बमों का इस्तेमाल करते थे। इंग्लैंड में भी इनका उपयोग समारोहों में किया जाता था। महाराजा चार्ल्स (पंचम) अपनी हरेक विजय का जश्न आतिशबाजी करके मनाते थे। इस तरह से 14 वीं शताब्दी के शुरू होते ही लगभग सभी देशों ने बम बनाने का काम शुरू कर दिया था।

अमरीका में शुरुआत-
अमरीका में इसकी शुरुआत 16वीं शताब्दी में मिलीट्री ने की थी। इसकी प्रतिक्रिया में पटाखें बनाने की कई कंपनियां खुली और सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला। बाद में पश्चिमी देशों ने हाथ से फेंके जाने वाले बम बनाए। बंदूके और तोप भी इसी कारण बनी थी।

कुछ रोचक बातें-
- 1892 में अमेरिका में कोलंबस के आगमन की चौथी शताब्दी पर ब्रकलिन ब्रिज पर जमकर आतिशबाजी की गई थी। इसे करीब 10 लाख लोगों ने देखा था।
- पटाखों से होने वाले खतरों को देखते हुए अमेरिका में 19वीं शताब्दी के अंत में ‘सोसायटी फॉर सप्रेशन आफ अननेससरी नाइस’ का गठन किया था।
- कुछ सालों पहले जापान में एक ऐसी रंगीन आतिशबाजी का प्रदर्शन किया गया था जो 3 हजार फुट की ऊंचाई पर जाकर 2 हजार फुट के व्यास में बिखर गई थी।
- सबसे लंबा पटाखा छोड़ने का प्रदर्शन 20 फरवरी, 1988 को यूनाईटेट ग्लाएशियन यूथ मूवमेंट द्वारा किया गया था। यह प्रदर्शन 9 घंटे 27 मिनट तक जारी रहा और इसमें 3338777 पटाखों तथा 666 किलोग्राम बारूद का इस्तेमाल किया था।
- भारत में पटाखें बनाने का मुख्य केन्द्र शिवाकाशी है जो कि एक छोटा शहर है, लेकिन इसके लिए संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।

0 comments:

Post a Comment