एक दिन बापू के आश्रम में

Monday, June 18, 2012



17 जून 2012 को मैं (अंकिता मिश्रा) और मेरा छोटा भाई अभिषेक (जो तस्वीरों में नजर आ रहा है) बापू के आश्रम सेवाग्राम में थे; जाकर बड़ा अच्छा लगा, बापू के जीवन और उनके कार्यों को नजदीक से देखने का अवसर मिला। प्राकृतिक आवास और पक्षियों के कलरव को सुनकर मन प्रफुल्लित हो उठा। गांधी जी ने अपने जीवन काल में चार आश्रम बनाएं। दो दक्षिण अफ्रीका में (फिनिक्स और टॉलस्ट्राय) और दो भारत में (साबरमती और सेवाग्राम) में है।मैंने भारत स्थिति दोनों ही आश्रम देखें हैं।  सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें से तीन आश्रम सरकार के अधीन में है, सिर्फ सेवाग्राम आश्रम ही ऐसा है जो आज भी ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जा रहा है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भरसक प्रयास किए कि ये आश्रम भी सरकार के अधीन हो जाए, लेकिन ट्रस्ट के सदस्यों ने मना कर दिया। जबकि उन्होंने इसके लिए पांच करोड़ रुपए का प्रस्ताव भी रखा था। आश्रम में जो सुकून और शान्ति मिली, वह शहरी परिवेश और दैनिक जीवन से कोसों दूर चली गई।



गांधी और उनके विचारों को वाकई आत्मसात करने का मन आपने बनाया है तो सबसे पहले सेवाग्राम जाएं। वहां गांधी जी के अनुयाईयों को काम करते देखें, उनके दर्शन को समझें। गांधी जी के निवास स्थान को करीब से देखें। गांधी साहित्य को पढ़ें और उसका मनन करें। गांधी जी धनोपार्जन करने को पाप समझते थे, लेकिन आजकल हर एक व्यक्ति धनोपार्जन में लगा हुआ है। सभी कुछ गांधी जी के विचारों के अलट हो रहा है। उन्होंने समाज को बदलने की पूरी कोशिश की, लेकिन जब समाज नहीं बदला तो उन्होंने स्वयं को बदल लिया। गांधी दर्शन से जुड़ी और उनके जीवन संघर्ष की कहानी बयां करती कुछ तस्वीरें पेश कर रहे हैं, जो उनके जीवन वृत्त को दर्शाती हैं। गांधी जी के आश्रम में मनुष्य, पशु  और पक्षी बगैर किसी भय के यूं ही विचरण करते रहते थे, जो आज भी कर रहे हैं। आश्रम में ही गाय, बैल रहते हैं जो खेती में सहायता करते हैं और उनसे प्राप्त होने वाले दूध-दही का उपयोग आश्रम के लोगों द्वारा किया जाता है। इतना ही नहीं गोबर का इस्तेमाल खाद के रूप में और गोबर गैस के लिए होता है। आश्रम में पकने वाला खाना आश्रम के खेतों से मिलने वाली सामग्री से ही तैयार किया जाता है। सभी पूरी मेहनत और लगन से काम करते हैं। जैविक खेती से ही सभी कुछ उगाया जाता है चाहे अनाज हो या तरकारी। फलों के पेड़ भी आश्रम में हैं। बेल के पेड़ों की संख्या बहुत अधिक है। इसमें लगने वाले बेल से चूर्ण तैयार किया जाता है जो आश्रम के बिक्री केन्द्र पर बेचा जाता है। इससे होने वाली आय को आश्रम के हित में उपयोग किया जाता है। जन सहयोग से आश्रम अच्छी तरह से चल रहा है। मैंने भी आश्रम में लगे बेल फल का आनन्द लिया और आश्रम में ही भोजन किया। वहां के खुशहाल परिवेश में सात्विक भोजन करने का आनन्द अलग है।


कैसे पहुंचे सेवाग्राम- 
अगर आप भी सेवाग्राम पहुंचने का मन बना रहे हैं, तो नागपुर से होकर दक्षिण में जाने वाली रेलगाड़ी में सफर करिए और सेवाग्राम स्टेशन पर उतरकर दस किलोमीटर की दूरी आटो रिक्शा से तय करने के बाद आप सीधे आश्रम पहुंच सकते हैं। आश्रम तक जाने वाले आटो प्रति सवारी के हिसाब से 15 रुपए लेते हैं और आपको आश्रम के गेट पर ही छोड़ते हैं।

यात्री निवास- 


अगर आपको बापू के आश्रम में अधिक दिन रुकना है और उनके जीवन को समझकर आत्मसात करना है तो यात्री निवास में ठहर सकते हैं। यात्री निवास आश्रम के सामने ही बना हुआ है। यहां पर 50 रुपए में आपको कमरा मिल जाएगा। खाना आश्रम में ही बनाया जाता है। बगैर मिर्च का सात्विक भोजन मिलता है। 30 रुपए में आप इसका भी स्वाद ले सकते हैं। साधना का सही स्थान है सेवाग्राम आश्रम। सत्य, अहिंसा, श्रम का सही पाठ सीखने को मिलेगा।  
सेवाग्राम आश्रम से बाहर निकलते ही गांधी प्रदर्शनी स्थल है। यहां पर गांधी जी के जीवन से जुड़ी अनेक तस्वीरें प्रदर्शित की गर्इं हैं। यहां पर खादी और कॉटन से बने उत्पाद, साहित्य और प्राकृतिक आहार की बिक्री भी की जाती है। जैविक खेती के जरिए उपजे अन्न से बने आहार का स्वाद ही अलग होता है। चटाई पर बैठकर चौकी पर रखकर भोजन करने का अलग मजा हैं। यहां पर हमने अबांडी के शरबत का स्वाद लिया। विशेष प्रकार का फूल ‘‘अबांडी’’ वहीं पर मिलता है। छ: घंटे भिगोकर

रखने के बाद इसके फूलों से यह शरबत तैयार होता है। स्वाद में बड़ा ही अच्छा और पाचक होता है। खाने के मामले में यहां उतनी विविधता देखने को नहीं मिलती है। अगर आपको कुछ खाना है तो आसानी से नहीं मिलेगा। बड़ी खोजबीन के बाद आपको मन मुताबिक भोजन मिल सकेगा। उप्र जैसा खाने का माहौल नहीं है कि जहां देखो वहां आपको खाने-पीने के ढेले दिख जाएं।







वर्धा विश्वविद्यालय- 





सेवाग्राम देखने के बाद हम महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में पहुंचे, जैसा नाम था, वैसा वहां देखने को मिला। दूर-दूर तक पहाड़, हरियाली और प्राकृतिक परिवेश देखने को मिला। जितनी दूर देख सकते थे विश्वविद्यालय का परिसर ही नजर आ रहा था। अध्ययन के लिए सबसे मुनासिब स्थान था। विद्यार्थी जीवन के लिए सबसे उत्तम स्थान है। विश्वविद्यालय की दूरी सेवाग्राम आश्रम से 15 किमी है। आटो रिक्शा से 120 रुपए किराया देकर यहां पहुंचा जा सकता है। वर्धा महाराष्ट्र का एक जिला है। यहां पर पब्लिक ट्रान्सपोर्ट की व्यवस्था नही है। निजी वाहन या फिर आटो रिक्शा बुक करके एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाया जा सकता है।

1 comments:

Unknown said...

sevagram mein shandar samaya gujarne ke liye BADHAI, aschi story likhi hai aapne

Post a Comment