कला और संस्कृति के रंग

Thursday, July 28, 2011

स्थान विशेष की माटी में रची-बसी कला बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। नृत्य, संगीत, नाटक, नृत्य नाटिका सहित ऐसी कई विधाएं हैं, जो व्यक्ति को कलात्मक अभिव्यक्ति से ओत-प्रोत करती हैं। भारत की संस्कृति और लोक कला को प्रदर्शित करने में ये कलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। नृत्य उनमें से एक है। ऐसा ही एक समागम पिछले दिनों 22-23 जून तक भोपाल के रवींद्र भवन में आयोजित दो दिवसीय रंगकृति उत्सव में देखने को मिला। राजगढ़ घराने की ख्यातिनाम कथक नृत्यांगन वी अनुराधा सिंह के नृत्य में आध्यात्मिकता के साथ-साथ सूफी परंपरा की झलक भी देखने को मिली। वहीं मशहूर रंगकर्मी और निर्देशक अलखनंदन के निर्देशन में मंचित किया गया नाटक ‘चारपाई’ भी भारतीय मध्यम वर्गीय जीवन की जीवंत शैली का जीता-जागता उदाहरण ही कहा जा सकता है। आजादी से पहले और आजादी के बाद के इतने वर्षों बाद भी व्यक्ति की आकाक्षाएं, जीवन से संघर्ष और पैसे की किल्लत जस की तस बनी हुई है। दो जून की रोटी के लिए व्यक्ति द्वारा की गई मशक्कत को इसमें बड़े ही प्रभावपूर्ण तरीके से दर्शाया गया। इस दौरान कला संस्कृति के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले मनीषियों को सम्मानित भी किया गया। रंग निर्देशक अलखनंदन, कथक नृत्यांगना वी अनुराधा सिंह, कला निर्देशक जयंत देशमुख, रंगकर्मी राकेश सेठी, बॉलीवुड कलाकार इश्तियाक खान, मॉडल अभिनीत गुप्ता, लेखक अमिताभ बुधौलिया, अंकिता मिश्रा, भरतनाट्यम नृत्यांगना प्राची मुजूमदार और लोक नृत्यांगना तनया बलवटे को रंगकृति पत्रिका के प्रधान संपादक रवि चौधरी की ओर से रंगकृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

0 comments:

Post a Comment