तरुवर की छाया

Saturday, July 9, 2011

हमारी संस्कृति में पेड़-पौधों का अपना अलग ही महत्व है। इसके अलावा इनका औषधीय उपयोग भी है। घर बनाने से लेकर शादी रचाने में इनका उपयोग किया जाता है। बीमारी को दूर करने में भी कारगर साबित होते हैं। ऐसे ही कुछ पेड़ों की चर्चा यहां कर रहे हैं, जिनका उपयोग इमारती लकड़ी के लिए किया जाता है, साथ ही औषधीय महत्व भी रखते हैं। आप भी इन पेड़ों को अपने घर के आस-पास लगा सकते हैं। इससे आपको छाया भी मिलेगी और इमारती लकड़ी का उपयोग भी कर सकेंगे। बच्चों यदि आप अभी कोई पेड़ लगाते हैं, तो 10-15 सालों में उसका लाभ जरूर मिलेगा जो आपको तो फायदा देगा ही, साथ ही पर्यावरण को बचाने में भी महती भूमिका निभाएगा।

साल-
मप्र के बांधवगढ़ नेशनल पार्क के अलावा प्रदेश के कई स्थानों में पाया जाता है। इसके अलावा उत्तराखंड स्थित जिम कार्वेट और उप्र के दुधवा नेशनल पार्क में इसके पेड़ बहुतायत से देखे जाते हैं। इसको कई नामों से भी जाता है जैसे- शाल, सराई, सरगी, साल्वा, साखू, साल, कन्दार और सेकवा नाम इत्यादि। यह लंबाई में बहुत ऊंचा उप पर्णपाती वृक्ष है। इसकी ऊंचाई 30 मीटर से भी अधिक हो सकती है। इसकी पत्तियां आकार में बड़ी हल्की मखमली सी होती हैं। हल्का हरा-पीला रंग लिए होती हैं। इमारती लकड़ी में इसका उपयोग किया जाता है।

औषधीय उपयोग-
इससे प्राप्त रेजिन का अपना अलग महत्व है। डायरिया और पेचिश में इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके अलावा इसका यूज त्वचा रोग से जुड़ी क्रीम्स और मलहम में भी होता है। इसके अलावा फुट केयर क्रीम में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही आयली स्किन के लिए क्लींजर के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। बाल धोने के काम भी आता है।

अन्य उपयोग- इसके अलावा ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में इसका उपयोग टोकरी, पत्तल और दोने बनाने में भी होता है। आदिवासी समुदाय शादी का निमंत्रण इसके पत्तों पर लिखकर ही देते हैं। इसकी पत्तियों से आसवन से प्राप्त तेल का उपयोग इत्र बनाने में किया जाता है।

Classification
Kingdom -Plantae
Class- Magnoliopsida
Order- Malvales
Family - Dipterocarpaceae
Scientific Name- Shorea robusta


नीम -

उत्तर-पूर्वी और मध्य भारत में नीम का पेड़ बहुतायत से पाया जाता है। गांवों से लेकर जंगली क्षेत्रों में भी इसे आसानी से देखा जा सकता है। इसे मिरेकल ट्री यानि चमत्कारों वाला पेड़ भी कहा जाता है। वर्ष भर हरे रहने वाले इस पेड़ की पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं। पेड़ की लंबाई 100 फिट तक होती है। बसंत ऋतु में इसमें फूल आते हैं। गर्मियों के दिनों में फल लगते हैं, जिन्हें निबोरी कहा जाता है। पके हुए फल को खाया जाता है। इससे निकले बीजों से तेल तैयार किया जाता है। पेड़ की छाल गहरे कत्थई रंग की होती है।

औषधीय उपयोग-
नीम का उपयोग औषधीय उपयोग के लिए 4000 सालों से किया जा रहा है। इसके तेल का उपयोग पेस्ट कंट्रोल और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में होता है। वहीं पत्तियों से चिकनपॉक्स का उपचार किया जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार शीतला माता इस पेड़ में वास करती हैं। इस पेड़ का चिकित्सीय उपयोग करने से सारे कष्टों का हरण हो जाता है। त्वचा रोग और सर्दी-बुखार में यह बड़ा ही लाभकारी होता है। इसके अलावा नीम की डड्यिों का उपयोग लोग दातून के रूप में भी करते हैं। इससे दांत तो साफ होते ही हैं, साथ ही दंत रोगों से भी छुटकारा मिलता है। इसके अलावा इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर के रूप में भी किया जाता है। साथ ही इसका सांस्कृतिक महत्व भी है। भारतीय मान्यता के अनुसार शादी से पहले लड़की नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर तैयार जल से स्नान करती है। वहीं बच्चे के जन्म के बाद माता इससे तैयार जल से शरीर शुद्ध करती है।


Classification
Kingdom- PlantaePlantae
Class - Magnoliopsida
Order - Sapindales
Family- Meliaceae
Scientific Name - Azadirachta indica

ब्रह्मी-

मप्र के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में इसे आप आसानी से देख सकते हैं। गद्दीदार हल्की गोलाकार गुच्छे में हरे रंग की पत्तियां आपको जमीन में दूर से ही दिख जाएंगी। यह बेल के रूप में जमीन में फैलती है। इसकी शाखाओं की लंबाई अधिकतम् 3 फिट तक ही होती है। यह मप्र के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, हिमांचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी पायी जाती है।

औषधीय उपयोग-
इसे खासतौर पर चिकित्सीय उपयोग के लिए ही जाना जाता है। यह ब्रोंकायटिस, क्रोनिक कफ, अस्थमा, अर्थराइटिस, गठिया, बाल झड़ना, पेट के रोग और त्वचा रोग में लाभकारी साबित होता है। आयुर्वेद के अनुसार इसमें एंटी-आॅक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। यह कार्डियो वेस्कुलर डिजीज में भी लाभ पहुंचाता है। इसमें विटामिन सी अधिकता में पायी जाती है। सलाद और सैंडबिच में भी इसका उपयोग किया जाता है। भारत में इसका उपयोग बुद्धिवर्धक के रूप में भी किया जाता है।

Classification
Kingdom -Plantae
Class-Magnoliopsida
Order - Lamiales
Family - Scrophuariaceae
Scientific Name - Bacopa monnieri

टीक -
मप्र के पेंच और सतपुड़ा नेशनल पार्क में यह बहुतायत से पाया जाता है। इसके अलावा गुजरात स्थित गिरि राष्ट्रीय उद्यान में भी इसके पेड़ देखे जा सकते हैं। इसे साक और टिक्का नाम से भी जाना जाता है। वर्षभर हरे रहने वाले इस पेड़ की लंबाई 30 मीटर तक होती है। इसमें ड्रूप फल लगते हैं। इसकी पत्तियां आकार में बड़ी होती हैं, देखने में तम्बाकू की पत्ती जैसी होती हैं। इसकी छाल हल्के भूरे रंग की होती है। सामान्यत: इसके पेड़ लंबाई में सीधे होते हैं। इमारती लकड़ी के अलावा इसका उपयोग होता है। भारत में पाई जाने वाली इमारती लकड़ियों में सबसे अधिक कीमत की लकड़ी में इसकी गिनती होती है। इसकी लकड़ी की खासियत यह होती है कि दीमक लगने की संभावना न के बराबर होती है।

औषधीय उपयोग-
इसकी पत्तियों से कपड़ों की डाई बनाने का काम किया जाता है। इससे प्राप्त रंग का उपयोग खाने के रंग के तौर पर भी किया जाता है। इसके सेवन से फीवर और हैडेक में लाभ पहुंचता है।


Classification
Kingdom- Plantae
Class-Magnoliopsida
Order-Lamiales
Family-Verbenaceae
Scientific Name - Tectona grandis

शीशम-

भारत में यह उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में आसानी से मिल जाता है। इसके पेड़ की लंबाई 25 मीटर हो सकती है। मोटाई 2-3 मीटर तक होती है। शाखाओं और घनी पत्तियों से ढका रहने वाला यह बहुवर्षीय पेड़ है। यह पंजाब का राज्य पेड़ भी है।
इमारती लकड़ी के रूप में इसका बहुतायत से उपयोग होता है। भारत में टीक की लकड़ी के बाद शीशम की लकड़ी का उपयोग बहुतायत से होता है। इसकी लकड़ी टिकाऊ और मजबूत होती है। फर्नीचर, खिड़की और दरवाजे बनाने में भी इसका खूब उपयोग होता है। पकी लकड़ी का रंग गहरे भूरे रंग का होता है। संस्कृत में इसे अगरु, अंग्रेजी में रोजवुड, तमिल में येते और बंगाली में शीशू कहते हैं।

औषधीय उपयोग- इसका अपना अलग चिकित्सीय महत्व है। शीशम के तेल को शरीर पर लगाने से नए सेल्स और ऊतकों का निर्माण होता है। यही वजह है कि चेहरे की झुर्रियों में इससे निजात मिलती है। ड्राई और आॅयली स्किन की समस्या से ग्रसित लोग भी इसका उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा इसके तेल का उपयोग परफ्यूम बनाने में भी होता है।


Classification
Kingdom - Plantae
Class- Magnoliopsida
Order- Fabales
Family -Fabaceae
Scientific Name -Dalbergia sissoo

  (यह जानकारी भोपाल से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र एलएन स्टार में प्रकाशित हुई है। )

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