राहुल गांधी की पदयात्रा

Thursday, July 28, 2011


डॉ. सुशील तिवारी
पदयात्रा आदिकाल से अद्यतन प्रासंगिक है। पदयात्रा का मूल दर्शन है जनता के बीच जाकर सीधे साक्षात्कार करना, उनके दुख-दर्द को दूर करना। भारतीय संस्कृति और परम्परा की शुरुआत भगवान श्री राम के युग से आरंभ हुई थी। उन्होंने वनगमन के दौरान भील, कोल, किरात, आदिवासी समाज के लोगों के बीच जाकर उनके दु:ख-दर्द को देखा, सुना और समाधान भी किया। असुरों का संहार कर एक स्वस्थ्य समाज की आधारशिला रखी थी। पूज्य महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे ने भी पदयात्रा करके समूचे देश की धरती पर भ्रमण किया था।
महात्मा गांधी के आदर्शों का अनुसरण करते हुए राहुल गांधी के मन में पदयात्रा का संकल्प जन्मा और उन्होंने उन सिद्धांतों के अनुरूप कांग्रेस पार्टी में मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष का आव्हान किया है।
राहुल गांधी के मन मैं पदयात्रा का संकल्प या भारतीय राजनीति में अचानक अभ्युदय नहीं हुआ है, बल्कि उनके इस तरह के आचरण के पीछे उनकी वंशानुमात परम्परा भी है। गांधी नेहरू परिवार की बलिदानी परम्परा इतिहास का एक अंग है। भाजपा के प्रवक्ता व्यंग्य करते हुये कहते हैं कि यह दिखावा है, फोटोसेशन है, पाखण्ड है, नौटंकी है इत्यादि। इस देश की स्वतंत्रता में यह आजादी सबको है कि जन समस्याओं के लिए आन्दोलन करें, राहुल गांधी यदि पदयात्रा कर रहे हैं तो उन्होंने किसी अन्य पार्टियों या सामाजिक क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को किसी ने रोका नहीं है कि आप पदयात्रा नहीं करें या जनांदोलन न करें। यह अजीब बात है कि राहुल गांधी यदि मौन रहते हैं तो क्यों रहते हैं? यदि पदयात्रा करते हैं तो क्यों कर रहे हैं? अपनी अकर्मण्यता को छिपाने के लिये केवल दोषा रोपण करना अनुचित है।
एक समय था तब इंदिरा जी बिहार में दलितों को न्याय दिलाने के लिये बेलछी गई हुई थीं। बेलछी नरसंहार की दुदांत स्थिति से दु:खी होकर उनके दु:ख-दर्द को जानने के लिये उन्होंने कदम उठाया था। इसी तरह राहुल गांधी जमीनी हकीकत जानने के लिये बिहार में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिये गये। कीचड़ में धंसे पांव,पैदल गये। आज दलितों के घरों में जाकर उनके यहां रात्रि विश्राम करना किसानों के दु:ख-दर्द को जानने के लिये पदयात्रा कर रहे हैं तो विरोधी पार्टियां नाक भोंह सिकोड़ रही है।
यही नहीं कांगे्रस के वरिष्ठ लोगों को भी उन्होंने चेताया है कि दिल्ली में बैठकर विकास की बातें न करें तथा गरीबों को न्याय दिलाना है तो जमीन पर काम करें भौतिकवादी सुख-सुविधाओं को त्याग कर जनता की सेवा करें। भ्रष्टाचार और अमर्यादित प्रसंग से बचें अन्यथा जनता और समय माफ नहीं करेगा। पूज्य महात्मा गांधी ने जिस दर्शन से सिद्धान्तों और आदर्शों के  सहारे गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलायी। सत्य का आचरण किया, निष्ठा से जन हिताय काम किये वो आज  भी प्रासंगिक हैं। अपनी विरासत और परम्परा को अक्षुण्ण रखना है तो आज हम सबको अपना नजरिया बदलना चाहिये।
पहले हम विकसित नहीं थे, गुलाम थे किन्तु उस समय हमारे गोपाल कृष्ण गोखले पं. मदन मोहन मालवीय, सरदार पटेल, टैगोर जैसे अनेकों थे। आज हम आजाद हैं विकसित हो रहे हैं किन्तु हमारे कद छोटे हो रहे हैं हम सब बौने हो गये हैं। आज धनबल, बाहुबल के चलते राजनीतिक मूल्यों में गिरावट आ गयी है जन सेवा और विकास की जगह स्वयं सेवा और भ्रष्ट आचरण से धन अर्जित करना उद्देश्य बन गया है। इससे निजात पाने के लिये जमीनी संघर्ष शुरू करना होगा जिसकी शुरुआत राहुल गांधी ने की है। राहुल गांधी के मन में आम गरीब के प्रति पीड़ा है दु:ख है। राहुल गांधी दो टूक बातें करने में हिचकते नहीं हैं। अपनी पार्टी के मठाघीशों से भी  सच कहने में नहीं चूकते। कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का उनका संकल्प अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उन्होंने कांगे्रसजनों को एहसास कराने पर विवश कर दिया है। यह सही है कि गांधी अतीत भी हैं, भविष्य भी है। उत्तरप्रदेश में उन्होंने बिगुल बजा दिया है। दो राह समय का नांद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते वो दुहराने के लिये अभिशप्त होते हैं। राहुल गांधी इतिहास से सबक लेकर महात्मा गांधी की विरासत को अक्षुण्ण बना रहे है। उनकी पदयात्रा भी महात्मा गांधी की मंशा के अनुरूप है। राहुल गांधी की पदयात्रा से आमजन में एक उत्साह का वातावरण निर्मित हुआ है। साथ ही कांगे्रस पार्टी में भी नई चेतना का संचार हुआ है।
 (लेखक डॉ. हरि सिंह गौर विवि सागर छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष है)

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