बम धमाके की खबर मिलने के बावजूद बेटी के फैशन शो में बदस्तूर शिरकत करते रहे मंत्री महोदय हो या धमाके के तीन घंटे बाद बयान देने वाले प्रधानमंत्री जी की सूपर स्लो संवेदना एक्सप्रेस हो, या एनएसजीके जिम्मेदार अफसर हो, जो समय पर सहायता के लिए भी नहीं पंहूच पाए। कहने का तात्पर्य यह कि नेता हो या अफसर या नेतानुमा अफसर हो या अफसरनुमा नेता, क्या फर्क पड़ता है सब दो मुंहे सांप हैं दोनों तरफ से काटेंगे, फंूफकारना,काटना,खाना उनका जन्मसित अधिकार है। कुत्ते की दुम सीधी हो जाए तो ऐतिहासिक परिवर्तन और नेता अफसर खाना छोड़ दें तो जन्मपत्री पर जूता। पर बस भई बहुत हुआ! अब समय आ गया है कि हम नेताओं के बारे में अपनी राय बदल ले! बहुत हो गया रिश्वतखोरी पर राग आलापना भ्रष्टाचार पर भाषण देना, काले धन पर कागज काले करना और काली करतूतों को कोसना। बाबा रामदेव अपनी धोती कस कर बांध लें क्योंकि सरकार गांठें खोलने की कला में माहिर हो गई है, या यूं कहे कि बेशर्मी के हूनर में सिलहस्त। संवेदना के दरबार में खुद को नंगा करने की ताकत हर किसी में नहीं होती और फिर नंगों से तो भगवान भी डरते है अन्ना बाबा क्या चीज है। पुराने लोग कह गए हैं संतोषी सदा सुखी! हमारी सरकार और के नेताओ ने यह सूत्र जीवन में उतार लिया है, वो तो बूरा हो इन मीडिया वालों का ‘बात टपकी नहीं कि लपकी,’ इन्हीं की वजह से ये संत जन अपनी अंतर्मन की आवाज जग जाहिर नहीं कर पा रहे हैं ‘ऐसे धमाके तो रोज होते रहते है’ कह कर तसल्ली करना पड़ रहा है वरना कहना तो शायद यह चाहते हो कि ये आंतकी हमारे शुभ चिंतक है जो जनसंख्या नियंत्रण मे सहयोग कर रहे है हम इनके आभारी है! काश कि एक विस्फोट माननीय नेता जी के घर की तरफ हो और फिर ऐसे सद्वचन हमें सुनने को मिले ।
देश को हमारे गृहमंत्री जी का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए, उन्हें बधाई के तार भेजे जाने चाहिए, उनकी प्रशंसा में संपादकीय और ब्लॉग लिखे जो चाहिए, वैसे भी यह देश उत्सव प्रियो को देश है उत्सव मनाया जाना चाहिए, आखिर उन्होंने इकतीस महीने देश को बचाए रखने का महान कार्य जो किया है और फिर आदमी कब तक कर्त्तव्य निष्ठा की जेल में बंद रहेगा, कम से कम पैरोल पर तो छूटेगा ही ऐसे में इक्के-दुक्के धमाके होना तो लाजमी हैं। फिर हमारे राष्टÑीय अतिथि कसाब का जन्मदिन भी तो था लाड़ला पूरे 24 साल का हो गया, अतिथी देवो भव: की परम्परा हम कैसे भूला सकते है, ये बस उसी का तोहफा समझ लीजिए! भइ तोहफा लेना ओर देना तो उसका मानव अधिकार है। ये मानव अधिकार ही तो है जो देश के कर्णधारों को नपुंसकता का ऐसा विषराधी इंजेक्शन लगा देता है कि आंतकवाद का काला नाग कितना भी जहर उगले उन पर असर नहीं करता, ये मानव अधिकार ही तो है जो करोड़ो खर्च कर के भी कसाब और अफजल जैसे जहरीले नाग पालने को मजबूर कर देता है ।
अब आप ही बताइए इससे अधिक संतोषी जन कहीं मिलेंगे, सब गांधी जी के बंदर हो गए है न बुरा दिखता है, न सुनते हैं और तो और चाहे इनके आतंकी जी ही क्यो न हो उनके बारे में भी बुरा नहीं कहते, यहां तक कि भावी पीढ़ी में बखूबी संस्कार बो रहे हैं । तभी तो हमारे राहुल बाबा को अमरीका के बाहर रह रहे अमेरिकियों में और अपने ही देश में आतंकी हमलों में जान गंवा रहे भारतीयों में कोई अन्तर नजर नहीं आता, धन्य हैं ये संतोषी जन और महान है इनके विचार। और हां किस शहर को कितने दिन बचाना है और कब ढील देनी है। गृहमंत्री जी जरा तफसील से बता दें तो हम उनके बड़े शुक्रगुजार होंगे। हम पृथ्वीवासी ही क्यों यमलोक भी आपको धन्यवाद जरूर देगा, आखिर सांसों की गिनती का हिसाब किताब आपने अपने हाथों में लेकर उनका वर्कलोड जो कम कर दिया ।
देश को हमारे गृहमंत्री जी का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए, उन्हें बधाई के तार भेजे जाने चाहिए, उनकी प्रशंसा में संपादकीय और ब्लॉग लिखे जो चाहिए, वैसे भी यह देश उत्सव प्रियो को देश है उत्सव मनाया जाना चाहिए, आखिर उन्होंने इकतीस महीने देश को बचाए रखने का महान कार्य जो किया है और फिर आदमी कब तक कर्त्तव्य निष्ठा की जेल में बंद रहेगा, कम से कम पैरोल पर तो छूटेगा ही ऐसे में इक्के-दुक्के धमाके होना तो लाजमी हैं। फिर हमारे राष्टÑीय अतिथि कसाब का जन्मदिन भी तो था लाड़ला पूरे 24 साल का हो गया, अतिथी देवो भव: की परम्परा हम कैसे भूला सकते है, ये बस उसी का तोहफा समझ लीजिए! भइ तोहफा लेना ओर देना तो उसका मानव अधिकार है। ये मानव अधिकार ही तो है जो देश के कर्णधारों को नपुंसकता का ऐसा विषराधी इंजेक्शन लगा देता है कि आंतकवाद का काला नाग कितना भी जहर उगले उन पर असर नहीं करता, ये मानव अधिकार ही तो है जो करोड़ो खर्च कर के भी कसाब और अफजल जैसे जहरीले नाग पालने को मजबूर कर देता है ।
अब आप ही बताइए इससे अधिक संतोषी जन कहीं मिलेंगे, सब गांधी जी के बंदर हो गए है न बुरा दिखता है, न सुनते हैं और तो और चाहे इनके आतंकी जी ही क्यो न हो उनके बारे में भी बुरा नहीं कहते, यहां तक कि भावी पीढ़ी में बखूबी संस्कार बो रहे हैं । तभी तो हमारे राहुल बाबा को अमरीका के बाहर रह रहे अमेरिकियों में और अपने ही देश में आतंकी हमलों में जान गंवा रहे भारतीयों में कोई अन्तर नजर नहीं आता, धन्य हैं ये संतोषी जन और महान है इनके विचार। और हां किस शहर को कितने दिन बचाना है और कब ढील देनी है। गृहमंत्री जी जरा तफसील से बता दें तो हम उनके बड़े शुक्रगुजार होंगे। हम पृथ्वीवासी ही क्यों यमलोक भी आपको धन्यवाद जरूर देगा, आखिर सांसों की गिनती का हिसाब किताब आपने अपने हाथों में लेकर उनका वर्कलोड जो कम कर दिया ।
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