पर्दे पर छाया मध्य प्रदेश

Sunday, July 21, 2013


छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे पर बालीवुड में मध्य प्रदेश वासियों ने अपनी अलग छाप छोड़ी है। फिल्म इंडस्ट्री में जया बच्चन, रजा मुराद, जीनत अमान से लेकर शरद सक्सेना ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपने सषक्त अभिनय और अथक मेहनत से नाम के साथ-साथ सिनेमा में गहरी पैठ बनायी है। सभी का प्रदेश से गहरा रिश्ता  रहा है। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है, बल्कि अनवरत जारी है। मुंबई पहुंचने वाले कलाकारों, अभिनेताओं की सूची दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। प्रदेष से बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली कलाकार निकलकर मुंबई नगरी में उपस्थिति दर्ज करा रहे है। कोई पर्दे के सामने रहकर अपने अभिनय और अपने कार्यों से प्रदेशवासियों को गौरवांन्वित करा रहा है, तो कोई पर्दे के पीछे पसीना बहाकर दिनरात एक करके बुलंदियों पर पहुंचने के लड़ रहा है। 


मेहनत तो कलाकार ही करता है, लेकिन नाम तो प्रदेश और शहर का ही होता है। मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा, और शाहवर अली ऐसे नाम हैं, जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी मेहनत और लगन से प्रदेश  को नई पहचान दी है। नब्बे के दशक के बाद से मुंबई और सिनेमा की ओर रुख करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। सत्तर और अस्सी के दशक में मुंबईया सिनेमा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी जया बच्चन हो या फिर रजा मुराद सभी ने अपने अभिनय से लोगों के दिल को जीता और प्रदेशवासियों को विश्वास दिलाया कि उनके अन्दर भी दम है और कुछ कर दिखाने का जज्बा कायम है। अच्छी फिल्म पटकथाओं के लिए जानी वाली सलीम और जावेद की जोड़ी को बनाने वाला भी मध्य प्रदेश  ही है। इंदौर की धरा में पले-बढ़े सलीम और भोपाल की आवो-हवा में घुले मिले जावेद अख्तर की कलम की ही सशक्त कलम का ताकत सुपरहिट शोले फिल्म है, जिसने उस समय हैट्रिक देकर अमिताभ और धर्मेन्द्र की जोड़ी को नई पहचान दी थी। आज के समय की बात करें तो आज भी मध्य प्रदेश  हिन्दी सिनेमा में राज कर रहा है।  सलमान खान की फिल्म ‘‘एक था टाइगर‘‘ ने सभी रिकार्ड को तोड़ते हुए सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म का रिकार्ड अपने नाम किया है। सलमान भी इंदौर की धरा पर जन्में हैं। उनके दोनों भाई अरबाज और सोहेल खान भी यही पैदा हुई हैं। फलती-फूलती जमीं ने कलाकारों को तो बुलंदी पर पहुंचाया ही है, साथ ही हम प्रदेशवासियों  का सिर भी गर्व से ऊंचा किया है।
अभिनय के क्षेत्र में ही नहीं संगीत और गायन के क्षेत्र में प्रदेश के कलाकारों ने कीर्तिमान रचे हैं। स्वर कोकिला लता मंगेश्कर व आशा  भोसले भी इंदौर में जन्मी हैं। वहीं सदाबहार गीतों और अभिनय के लिए जाने वाले अशोक  व किशोर दा भी खंडवा की जमीं पर पैदा हुए। इतना ही नहीं सागर के रहने वाले विट्ठल भाई पटेल ने फिल्म ‘‘बाॅबी‘‘ में बेहतरीन गीत लिखकर ऋषि कपूर और नीतू सिंह की जोड़ी को उस समय युवाओं की सबसे पसंदीदा जोडि़यों में से एक बना दिया था। नबाव पटौदी का लिंक भोपाल शहर से होने के कारण शहर खेल के साथ-साथ सिनेमा के क्षेत्र में भी बुलंदियों पर छाया रहा। शर्मिला टैगोर, सोहा अली खान और सैफ अली खान आज भी शहर में आते हैं और शहरवासियों को इस बात का अहसास कराते हैं कि भोपाल हमेशा की तरह फिल्मी दुनिया में अपनी गरिमामय उपस्थिति बनाए रखेगा। नई प्रतिभाएं पैदा करने में भी शहर महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है।

पर्दे के पीछे-
पर्दे के पीछे भी प्रदेश व शहर  का बड़ा जनसमूह काम कर रहा है, जिसमें निर्देशक, एडीटर, संगीतकार, गीतकार और तकनीकि विशेषज्ञ शामिल हैं। भोपाल में लंबे समय तक रहे फिल्म निर्देशक रोमी जाफरी का भी शहर से लगाव अभी कम नहीं हुआ है। यही वजह है कि उन्होंने पिछले साल यहां पर फिल्म ‘‘गली-गली में चोर है‘‘ की शूटिंग की, हालांकि फिल्म को बाॅक्स आॅफिस पर सफलता नहीं मिली, लेकिन फिल्मकार द्वारा अपने शहर को ध्यान में रखते हुए फिल्म निर्माण करना कोई छोटी बात नहीं है। मुंबई की चमक-दमक को छोड़ निर्देशक  और प्रोड्यूसर थ्री टायर सिटी की ओर रुख कर रहे हैं। यह हमारे लिए हर्ष की बात है। शहर से निकले कलाकारों और निर्देशकों की पहल पर बड़े कलाकार और निर्देशकों ने भी यहां आकर फिल्म निर्माण किया है। इसमें मेगा बजट की फिल्में जैसे-राजनीति, आरक्षण और चक्रव्यूह शामिल हैं। इसके अलावा छोटे औसत बजट की फिल्म पीपली लाइव की शूटिंग भी भोपाल के पास के गांव में ही की गई। राख और बटर फ्लाई जैसी छोटी फिल्में भी हैं, जिनकी शूटिंग भोपाल शहर व आस-पास के क्षेत्रों में हुई हैं। फिल्मकार इतनी बड़ी संख्या में फिल्म बनाने के लिए अग्रसर हो रहे हैं। इसका कारण यहां मिलने वाली सुविधाएं और प्रतिभाशाली कलाकार हैं। ऐसा होने से स्थानीय कलाकारों को मंच तो मिला ही है; साथ ही उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में भी सुधार आया है।

बनाई जगह-
प्रदेश के कलाकारों ने बॉलीवुड  में अपनी खास पहचान बनाई है। चाहे निर्देशक  हो या फिर कलाकार, सभी में अद्वितीय प्रतिभा है। जाने-माने निर्देशक  सुधीर मिश्रा प्रदेश के सागर जिले से हैं, जिन्होंने धारावी, खोया-खोया चांद जैसी  मशहूर फिल्में बनाई। सिनेमा की गहराई को समझने वाले सुधीर की पहचान एक मझे हुए फिल्म निर्देशक  रूप में इंडस्ट्री में होती है। सागर यूनीवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सुधीर ने फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख 60 के दशक में किया, तब उन्हें शायद इस बात का भान भी नहीं था कि आगे चलकर वे इतने अच्छे निर्देशक  बनेंगे। फिल्म से जुड़ी किसी भी प्रकार की पढ़ाई उन्होंने नहीं की, लेकिन फिल्म संस्थान में पढ़ने वालों से लगातार कुछ न कुछ सीखते रहे। उनकी सीखने की आदत का ही नतीजा है कि आज वे जहां हैं, वहां पहुंचना हर किसी के बस का काम नहीं हैं। यह बात उन्होंने स्वयं एक इंटरव्यू के दौरान कही। गंभीर निर्देशकों में गिने जाने वाले सुधीर की पसंदीदा अभिनेत्रियों की बात करें तो चित्रांगदा ही उनकी फेवरेट अभिनेत्री हैं, जो गुण उन्हें उनके अंदर नजर आते हैं, वैसे किसी में नहीं दिखते। वैसे चित्रांगदा ने भी फिल्म ‘‘देसी ब्याॅज‘‘ से अपनी धमाकेदार वापिसी करके अपने प्रशंसकों को खुश कर दिया है। फिल्म ‘‘जोकर‘‘ में उन्होंने आयटम सांग किया है। जब मध्य प्रदेश की बात निर्देशक के योगदान के संदर्भ में की जा रही है तो प्रदेश  के प्रमुख शहर ग्वालियर को छोड़ा नहीं जा सकता है। गीतकार जावेद अख्तर ने अपना बचपन इसी शहर में गुजारा है। भोपाल से उन्होंने अपनी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। इसके अलावा प्रदेष से कई प्रतिभाएं निकली हैं जिन्होंने बॉलीवुड  में अपना योगदान देकर सिर्फ प्रदेश का मान ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि देश  का भी सिर ऊंचा किया है। इसमें कवि प्रदीप, सदानन्द किरकिरे और राहत इंदौरी व निदा फाजली जैसे नाम शामिल हैं। 

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