बेटे के लिए मन्नतें और बेटी का तिरस्कार

Wednesday, July 3, 2013





हमारी संस्कृति और हमारी परंपराएं जिनके बीच हम पलते और बड़े होते हैं। बचपन से लेकर जवानी और बुढ़ापे की सीढ़ी चढ़ते वक्त भी हम यही देखते हैं कि बेटियां हमारे लिए देवी के समान हैं। साल में दो बार नवरात्रि का जब पूजन हम करते हैं, तो नौ दिनों तक देवियों के रूप में सम्मान पाने वाली लड़कियां फूली नहीं समाती हैं, उन्हें इस बात की खुशी  होती है कि वे कितनी अच्छी संस्कृति और परिवेश में पल-बढ़ रही हैं। उनका आव-भगत तो देवियों की तरह किया जा रहा है। इतना सम्मान और प्यार मिलता है, कि  वे अपने अंधकारमय भविष्य की कल्पना भी नहीं कर पाती हैं।
यह सब सिर्फ कुछ वक्त की बातें होती हैं। असली जिंदगी तो उनकी शादी के बाद शुरू होती हैं। पुरुषवादी मानसिकता और सामाजिक परिवेश  के ताने-बाने के बीच वे घुटनभरी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाती हैं। लखनऊ के पास एक गांव में घटी घटना रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
रागिनी (परिवर्तित नाम) ने किशोरावस्था भी पूरी नहीं कर पाई थी कि उसके घरवालों ने घर-परिवार देखकर उसकी शादी कर दी थी। वह दो बहिनें थी। मां और पिता ने लड़के की चाहत किए बगैर उन दोनों को बड़े ही नाज़ से पाला था। लाड़ली रागिनी को ससुराल में खूब प्यार मिला। शुरुआती वर्षों  में तो इस बात का उसे भान ही नहीं हुआ कि कुछ सालों में यही परिवार उसके ऊपर जुल्म बरसाएगा। शादी के कुछ साल भीतर ही वह एक बच्ची की मां बन गई। बेटी की परिवरिश और के काम-काज में लीन रहने वाली रागिनी घर, बाहर और खेतों पर जाकर मन से काम करती और अपने पति और परिवार का पूरा ध्यान रखती, लेकिन पता नहीं कब और कैसे उसके परिवार को नजर लग गई। वह चार बच्चियों की मां बन गई।
बच्चियों को जन्म देना उसके लिए पाप बन गया। पति आए दिन उसे मारता और पीटता। एक दिन तो इन्तहां हो गई। पति ने अपनी बड़ी बेटी को "सल्फास" की गोली तक खिला दी, खैर बेटी बच गई; क्योंकि रागिनी समय पर उसे अस्पताल लेकर पहुंच गई। एक समय था जब  रागिनी के पति को नेक मिजाज और हंस-मुख व्यवहार के लिए जाना जाता था, लेकिन उनका ये व्यवहार दिन प्रतिदिन बदलता जा रहा था। चिढ़चिढ़े होते जा रहे थे। बात-बात पर बच्चियों  को पीटते। बच्चियां उनकी आंखों की किरकिरी बन गई थीं। समान शिक्षा का हक भी उनसे छीन लिया। उनकी पढ़ाई लिखाई सब बंद करवा दी। बच्चियां स्वयं कारोबार में लग गईं। हाट-बाजार में सामान बेंचती और अपनी जरूरतें पूरी करती। मां भी उनके साथ काम में लगी रहती।
आखिर रागिनी बेटे को जन्म नहीं दे सकी। इसमें उसका क्या कसूर ? लेकिन उसका पति उसे ही दोषी समझता। 'x' एक्स और 'y' वाय गुणसू़त्र ही बच्चे के लिंग निर्धारण के लिए जिम्मेदार होते हैं। महिला में एक्स-एक्स और पुरुष में एक्स और वाय गुणसू़त्र होता हैं। जब महिला का एक्स पुरुष के वाय गुणसू़त्र से मेल करता है तो लड़का और यदि महिला का एक्स पुरुष के एक्स से मेल करता है तो लड़की का निर्धारण होता है; क्योंकि महिला में सिर्फ एक्स गुणसूत्र का ही एक जोड़ा होता है, जबकि पुरुष में एक एक्स और एक वाय गुणसूत्र लिंग निर्धारण के लिए होते हैं । ऐसे में महिला की क्या गलती, अगर लड़की का जन्म हुआ। उसके पास तो सिर्फ एक्स गुणसूत्र ही होता है, वाय तो पुरुष से मिलता है। लड़की पैदा होने पर महिला को यातना दी जाती है, जबकि पुरुष इसके लिए जिम्मेदार होता है।
लड़का पैदा नहीं हुआ तो रागिनी का पति उसे दूसरी शादी करने की धमकी देता और कई बार तो नौबत भी आ पहुंची थी कि वह दूसरी शादी भी कर लेगा, लेकिन रागिनी ने जैसे-तैसे उसे रोका। उसे तो रोक लिया पर अपनी मौत न रोक सकी।
एक दिन जब वह बच्चियों के साथ खेत पर काम कर रही थी, तो उसका पति बड़े ही प्यार से उसे बुलाकर ले आया और कहा कि घर चलो और अच्छा सा खाना पकाओ। वो बेचारी चली गयी। बच्चियों से उसके पति ने कहा कि ‘‘जब तक मैं खेतों पर न आऊं,  तुम लोग यहीं रहना।‘‘ वहां जाकर उसने दरवाजा बंद किया और रागिनी को चारपाई में बांधकर उसके ऊपर से साडि़यां लपेटी और मिट्टी का तेल डालकर जला दिया। धूं -धूं कर रागिनी जलने लगी। जलकर साडि़यां खाक हो गईं तो रागिनी चारपाई से छूट गई और वह उठकर भागी, तब तक उसका बदन आधे से ज्यादा जल चुका था। घर का दरवाजा भी जलकर गिर गया। लोगों ने जब आग की लपटे देखी तो घर की ओर दौड़े और उसे अस्पताल ले गए। रागिनी का इलाज शुरू हुआ, लेकिन रागिनी आखिरी सांसे गिन रही थी और 24 घंटे के अंदर चल बसी।
लड़कियां घर आईं और उन्होंने जब ये मंजर देखा तो अवाक रह गईं, उनकी रूह कांप उठी। उन्हें लगा कि उनका पिता अब उनके साथ भी ऐसा ही सुलूक करेगा; क्योंकि पहले भी वह उन्हें मारने की कोशिश कर चुका था। तेज धारधार औजार घर में लाकर उसने रखे थे और मारने की प्लानिंग भी की थी, लेकिन उन भोली बच्चियों ने उसकी मंशा  को भांपकर उन औजारों को जमीन में गाढ़ दिया था।
 पति ने अपनी पत्नी को तो जला दिया, लेकिन वह पश्चाताप  की अग्नि में चल रहा था। ऐसा घिनौना कृत्य करने के बाद उसे जेल ही मिलती, शायद यही सोचकर उसने भी अपनी जिंदगी खत्म कर ली और फांसी के फंदे पर झूल गया।
जब तक लड़कियों और लड़के के बीच की खाई को पारवारिक , सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर नहीं पाटा जाएगा, तब तक ऐसे वाकये होते रहेंगें और हमें डराते रहेंगे। मेरा मानना है कि जिस तरह से लड़की को उसकी मां संस्कार और मूल्यों की शिक्षा देती है कि ससुराल में जाकर ऐसा करना, वैसा करना वगैरह-वगैरह........जब तक लड़के के अन्दर बचपन से लड़कियों के सम्मान और उनके साथ प्यार से रहने की मनोवृत्ति विकसित नहीं होगी , तब तक कुछ नहीं हो सकता हैं। मां ही इसकी नींव डाल सकती है। हर मां अपने बच्चे को ये सीख दे तो हो सकता है कि हमें रास्ता जल्दी मिल जाए। लड़के के सामने मां अपनी बेटी के साथ समानता का व्यवहार करे। यदि बाहरी परिवेश  को देखकर वह किसी तरह की भेदभाव से जुड़ी हरकत करता भी है तो उस पर षिकंजा कसा जाए। उसकी वाणी और बोली पर लगाम लगाई जाए। शब्द और व्यवहार में स्त्रियों के लिए प्यार पैदा हो, ऐसी परवरिश दी जाए। तभी यह संभव हो सकता है। विकास की रफ्तार के साथ दौड़ती इस जिंदगी में अच्छी परवरिष की बुनियादें पीछे छूट गईं हैं। मनुष्य में मनुष्यता खत्म होती जा रही है।

(यह सच्ची घटना  है- जैसा कि रागिनी की चचेरी बहिन सरिता ने बताया)

0 comments:

Post a Comment