बेटियों से हरा हुआ गांव

Thursday, July 25, 2013


गोहद से लौटकर अंकिता मिश्रा।

देश में जहां बेटियों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में स्वर तेज हो रहे हैं। वहीं भिंड जिला के ब्लाॅक गोहद के सेंघवारी गांव के लोगों ने बेटियों के हक में अपने हाथ पहले ही उठा लिए थे। बेटी के पैदा होते ही, उसके नाम के पांच पेड़ गांव में लगाए जाते हैं। ऐसा करके लोग बेटी को बचाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। प्रदेश में चल रही ‘बेटी बचाओ योजना’  तो एक साल पहले ही शुरू की गई है, लेकिन बेटियों के हित में गांव के लोग बहुत पहले ही चेत गए थे। लोगों को लड़कियों के जनम और उनके संरक्षण के प्रति प्रेरित किया यहां के नाट्य समूह ‘‘बांधो मुट्ठी बहना‘‘ ने।


इस जिले में मध्य प्रदेश के अन्य जिलों के मुकाबले लिंगानुपात बेहद कम है। वर्ष 2011 की जनगणना में जारी किए आंकड़ों पर नजर डालते हैं, तो स्पष्ट  नजर आता है कि वर्ष 1991 से लेकर 2011 के बीच शिशु लिंगानुपात में मप्र में भारी गिरावट आई है। 1991 में प्रति हजार लड़कों पर जहां 941 लड़कियां थी, अब उनकी संख्याग महज 912 बची है। भिंड जिले में शिशु लिंगानुपात सबसे कम और चौंकाने वाला है। प्रति हजार लड़कों पर सिर्फ 835 ही लड़कियां हैं। 2001 में यह आंकड़ा 832 था जिसमें कि मामूली बढ़ोत्तजरी हुई है। यह हर्ष की बात है। इसके पीछे सामाजिक चेतना और सरकारी सख्तीं क यह हमारे लिए चिन्ता  का विषय है। शिशु लिंगानुपात के मामले में मप्र के भिण्डब जिले के ब्लॉीक गोहद के सेंघवारी गांव में लड़कियों की संख्या एक समय में लड़के मुकाबले बेहद कम हो गई थी। यहां पर शिशु लिंगानुपात 800 से भी नीचे पहुंच गया था। इसकी मुख्य वजह बेटियों को पैदा होने से पहले या पैदा होने के बाद मार देना ही था। इसके पीछे की मुख्य लोग बेटियों की शादी में लगने वाला भारी-भरकम दहेज मानते हैं। यही कारण है कि घर में बेटी के जनम को लोग नासूर की तरह समझते थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। बेटियों को लोग घर की हरियाली और खुशी मानने लगे हैं और  गांव में बेटी के नाम पर पांच पेड़ लगाने की परंपरा चल पड़ी है।
गांव के लोगों की इस अभिनवव पहल को ध्यान में रखते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग, ग्वालियर एवं चंबल संभाग भी जाग गया है। यही कारण है कि विभाग ने भिंड, मुरैना जिले में ऐसे 25 से अधिक गांवों की सूची तैयार की है, जहां बेटी के नाम पर पेड़ लगाए जाएंगे। जिले में ऐसे ही गांवों को आगे किया जाएगा जहां पर बेटियों की संख्या कम है और जहां रूढि़वादी परंपराओं के चलते परिवार में उचित सम्मान नहीं मिलता है।

बनाई नुक्कड नाटक मंडली-
गांव की बोली-भाषा में तैयार किए गए नुक्कड़ नाटक का असर लोगों पर अन्य संचार माध्यामों के मुकाबले अधिक होता है। यही वजह है कि महिला एवं बाल विकास विभाग ने इस मुहिम को गति देने के लिए चार नुक्कड़ नाटक मंडली भी तैयार की हैं जो गांव-गांव जाकर नुक्कड़ नाटक के माध्यम से बेटी बचाओ का संदेश देगी। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से कन्या भू्रण हत्या, जन्म के समय मार देना, लड़के-लड़की में भेद-भाव, बालिका शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े विषय भी शामिल होंगे।

नहीं मरेंगी बेटियां-
भिंड जिले में पिछले दो सालों से सक्रिय नुक्कड़ नाटक मंडली बांधो मुट्ठी बहना ने इस बात का प्रण किया है कि अब यहां बेटियां नहीं मारी जाएंगी। उन्हें भी जीने का हक मिलेगा। इसके बारे में नाटक मंडली की प्रमुख गीता सिसोदिया बताती हैं कि अपने आस-पास के माहौल में उन्होंने लड़कियों की दुर्दशा को देखा है। पहली बात तो उन्हें जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है, यदि जन्म ले भी लेती हैं तो फिर लोग उन्हें मार देते हैं। यदि किसी तरह जीवन के आगे के सफर को तय करती हैं, तो उन्हें घर में प्यार और सम्मान नहीं मिलता। पति और परिवार के तमाम विरोध करने के बावजूद उन्होंने किसी की नहीं सुनी। समाज में बेटियों को बराबर का हक मिले, उन्हें कोई मारे नहीं। इसको लेकर उन्होंने दस महिला सदस्यों की नुक्कड़ नाटक मंडली बनाई और गांव-गांव जाकर बेटी बचाओ की मुहिम को आगे बढ़ाने में लग गईं। गीता का कहना है कि लाख रूकावटंे आने के बावजूद भी वह अपनी मुहिम को विराम तब तक नहीं देंगी, जब तक कि जिले के हर गांव में बच्चियों को बराबर हक और सम्मान नहीं मिल जाता है।

नातिन के नाम पर लगाए पेड़-

सेंघवारी गांव के सरपंच पूरन सिंह बताते हैं कि पहले इस गांव में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम थी। लोग भी लड़की पैदा होने पर मां को ही बुरा-भला कहते थे, लेकिन अब स्थिति ऐसी नहीं है। गांव के कुछ लोग जागरूक हुए और उन्होंने बेटी के नाम पर पेड़ लगाने की परंपरा शुरू की है। इसका नतीजा यह हुआ है कि गांव तो हरा-भरा दिखता ही है, साथ ही बेटियों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। गांव के बुजुर्ग शिवसिंह ने गांव में पेड़ लगाने की परंपरा शुरू की थी। उन्होंने अपनी बेटी प्रीति के नाम पर 15 साल पहले पांच पेड़ लगाए थे जो आज बड़े होकर गांवभर के लोगों को हवा और छाया दे रहे हैं। पेड़ लगाने की परंपरा को कायम रखते हुए उन्होंने अपनी नातिन रोशनी के नाम पर भी पांच पेड़ लगाए हैं। उनके इस काम को देखते हुए गांव के अन्य लोग भी इस पहल को आगे बढ़ा रहे हैं।

जारी रहेगी मुहिम- 
शुरू हुई ये मुहिम बंद नहीं होगी, बल्कि अनवरत जारी रहेगी। बिटिया के संरक्षण के लिए महिला एवं बाल विकास पूरी सक्रियता के साथ पहल को आगे बढ़ा रहा है। विभाग के ग्वालियर एवं चंबल संभाग के संयुक्त संचालक सुरेश तोमर बताते हैं कि ऐसे गांवों को सूचीबद्ध किया जा रहा है, जहां लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम है। इतना ही नहीं लड़कियों को मारने के लिए तरह के कृत्य भी लोगों द्वारा किए जा रहे हैं। जन जागृति के लिए ऐसे गांवों में नुक्कड़ नाटक किए जाएंगे। लोगों को जागरूक किया जाएगा। उनकी सहमति हर एक लड़की के नाम से पेड़ भी लगाया जाएगा। बेटी के नाम पर जो लोग पेड़ लगाएंगे उनका भावात्मक लगाव भी बढ़ेगा, जिससे पेड़ की देख-रेख ठीक ढंग से होगी, साथ ही बच्ची की परवरिश और पढ़ाई-लिखाई पर भी विशेष ध्यान देने के लिए उन्हें प्रेरणा मिलेगी। इतना ही नहीं संबंधित जिले के जनप्रतिनिधि स्वयं अपने क्षेत्र में जाकर लोगों को बिटिया बचाओ अभियान से जोड़ेंगे।

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