समलैंगिकता दोष नहीं, पारिवारिक सहयोग जरूरी

Thursday, July 4, 2013



लाइफस्टाइल के बदलते स्वरूप के कारण लोगों में शारीरिक और सामाजिक व स्वाभाविक परिवर्तनों का होना लाजिमी है; हालांकि ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। वक्त के तकाजे को समझते हुए पैरेंट्स को इस बात को समझना होगा कि उनके बच्चे में यदि लिंग के विपरीत किसी भी प्रकार का स्वभाव परिवर्तन नजर आ रहा है, तो उसे नजरअंदाज न करें, बल्कि मनोचिकित्सक व मनोवैज्ञानिकों से उचित परामर्श लेकर समस्या का हल ढूंढें। शहर के मनोचिकित्सकों से बात करने से इस बात का खुलासा  हुआ है कि गे और लेस्बिन्स की संख्या बढ़ रही है। अपनी भावनाओं और जरूरतों के बारे में ऐसे लोग खुलकर तो सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन मनोचकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों ने इस संबंध में बात कर रहे हैं और सलाह भी ले रहे हैं। विशेषज्ञों की माने तो इस तरह के मामलों में तीस से चार प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो रही है।


मनोचिकित्सक डॉ. काकोली राय कहती हैं कि इस तरह के लोगों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है, बल्कि उनकी जरूरत और शारीरिक परिवर्तनों को ध्यान में रखकर परिवार और सामाज के लोगों को उनकी मदद करनी चाहिए। समलैंगिकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जिस तरह के निर्णय आएं हैं, उनसे ऐसे लोगों को बल मिला है। यही वजह है कि समलैगिंक अपनी समस्याओं को मनोचिकित्सकों के सामने रखकर समस्या का निदान ढूंढ रहे हैं। समलैंगिकों के मामले अभी तक मेट्रोज तक ही सीमित थे, लेकिन इनका दायरा छोटे शहरों में भी बढ़ रहा है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि सोसाइटी में ऐसे लोग पहले से ही थे, लेकिन संकोच और सामाजिक भय के कारण सामने नहीं आ पा रहे थे, लेकिन कोर्ट के निर्णयों और मीडिया में आम होती खबरों से उन्हें बल मिला है और वे अपने संबंधों को स्वीकारने के लिए सामाजिक रूप से कदम भी उठा रहे हैं। इसके बारे में मनोचिकित्सक डॉ. काकोली कहती हैं कि महीने में चार-पांच लोग ऐसे आते हैं जो गे और लेस्बियन होते हैं।
इसमें व्यक्ति का कोई दोष नहीं है, यह तो उसके अन्दर होने वाले शारीरिक परिवर्तन हैं, जिनके कारण एक ही तरह के लिंग के प्रति उनका आकर्षण बढ़ता है। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि ऐसे लोग शादी-शुदा जिन्दगी नहीं जी सकते या फिर महिलाएं मां नहीं बन सकती हैं। अगर माता-पिता व परिवार के सदस्य उन्हें सपोर्ट करें तो वे अच्छा जीवन जी सकते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि समस्या को समय रहते ही नियंत्रित कर लिया जाए।

कराया लिंग परिवर्तन-
माता-पिता के लिए इस तरह के निर्णय लेना बहुत कठिन होता है। अक्सर पैरेंट्स तो इस तरह के शब्द सुनकर ‘क्या मेरा बच्चा गे या लेस्बियन है ! ’ सुनकर सॉक्ड रह जाते हैं। डॉ. काकोली ने बताया कि जब उनके पास ऐसे केस आए और उन्होंने पैरेंट्स को बातचीत के बाद बताया कि उनका बच्चा ऐसा है, तो पैरेन्ट्स सुनते ही बेहोस हो गए। जैसे-तैसे उन्हें समझाया फिर बात बनी। बात ऐसी बनी कि उन्होंने बच्चे का लिंग परिवर्तन कराने का निर्णय ले लिया। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने बताया कि फीमेल; मेल में कन्वर्ट हो गई।
पैरेंट्स को स्वयं इस बात को स्वीकारना होग कि बच्चा उनका है तो निर्णय भी उन्हें ही लेने होंगे। सामाजिक डर और लोगों की बातों को ध्यान में रखकर अपने बच्चे/ युवक/ युवतियों को अकेला न छोड़ें।

सताता है सामाजिक डर-
मनोचिकित्सक डॉ. पूनम सिंह कहती हैं कि उनके पास ऐसे केसेज आते हैं जो इस बात की शिकायत करते हैं कि सामाजिक भय और लोगों की छोटी मानसिकता के कारण वे खुलकर अपना जीवन नहीं जी पाते हैं। उनके पास आए ऐसे लोगों का कहना था कि यदि वे किसी रेस्टोरेंट में जाते हैं तो वहां बैठे आस-पास के लोग उन्हें ऐसे देखते हैं कि जैसे वे आसमान से उतरे हैं। तरह-तरह के कमेन्ट उन्हें सुनने पड़ते हैं। यदि बात ज्यादा बढ़ जाए तो हाथापाई की नौबत भी आ जाती है। ऐसे लोगों को सामाजिक सहयोग व पारिवारिक सहयोग की जरूरत है। ऐसे लोगों को दरकिनार करके इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता है।

ध्यान दें पैरेंट्स-
अगर पैरेंट्स ध्यान दें तो बचपन से ही स्थिति को कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन शारीरिक परिर्वतनों और स्वभाव में परिवर्तन आ रहा है तो उसे एक दम से खत्म कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है।
- अगर आपका बच्चा अपनी ही तरह के लोगों जैसे लड़का-लड़कों के साथ खेलने नहीं जाता, लड़कों के खेल और उनकी स्टाइल को पसंद नहीं करता तो इस प्रकार के लक्षण गे के हो सकते हैं।
- लड़का अगर लड़कियों की तरह कपड़े पहने, श्रृंगार करे तो ये समझ लें कि स्थिति ठीक नहीं है। ऐसी चीजों को इग्नोर न करें, बल्कि समय रहते परामर्श लें। बड़े में समस्या बढ़ सकती है।
- लड़की यदि लड़कों की तरह रहे। एक उम्र तक को ठीक लगता है कि वह लड़कों की स्टाइल में रहकर सभी तरह के कामकाज कर रही होती है, लेकिन उम्र के विशेष पड़ाव पर जाकर ऐसा ही स्वभाव बना रहता माता-पिता के लिए चिन्ताजनक हो जाता है। इसलिए बच्चे के हर तरह के क्रिया-कलापों पर नजर रखें। लड़कियों के प्रति बढ़ता उसका आकर्षण भी माता-पिता के लिए इंडीकेटर हो सकता है।

इनका कहना-
यह   बात बिल्कुल सच है कि सामाजिक भय के कारण ऐसे लोग सामने नहीं आ पा रहे हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है। समाज में अगर उन्हें गलत नजर से न देखा जाए तो ऐसे लोग खुलकर सामने आएंगे। ऐसे लोगों का स्वयं पर इसलिए भी जोर नहीं होता है; क्योंकि ये तो उनके अन्दर होने वाले शारीरिक परिर्वतनों का परिणाम होता है। लोगों को उन्हें बुरी नजर से नहीं देखना चाहिए।
डॉ. सुमित राय, मनोवैज्ञानिक

1 comments:

Raghunath Singh Ranawat said...

समलैंगिक से विषम लैंगिक होने पर हार्दिक बधाई,
प्रयोज्य जुलाई 2021 अंतिम सप्ताह मे पिता बना और एक वंश वृक्ष बन पितृ ऋण से मुक्त होकर शानदार गौरवशाली ज़िंदगी जी रहा है।

पुत्र होने की बधाई और शुभ कामनाए देता हूँ ।

https://raghunath-singh.blogspot.com/2020/06/blog-post.html

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